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Sps- एक बड़े गांव का स्वास्थ्य केंद्र देख लोग हैरान, इसलिए बेमौत मर रहे है देश के ग्रामीण 

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नई दिल्ली/ फरीदाबाद - शहर के लोग खुशहाल रहें इसलिए गांवों के लोगों का भी खुशहाल होना बहुत जरूरी है। खाने-पीने की अधिकतर चीजें गांवों से शहरों तक पहुँचती हैं। किसान रात दिन परिश्रम करते हैं तब सब्जियां और अनाज पैदा होता है। नेता वोट तो गांवों में उसी तरह मांगते हैं जैसे शहरों में मांगते हैं लेकिन जीतने के बाद गांवों को भूल जाते हैं शहर ही याद रहता है। खबर के साथ तस्वीरें हरियाणा के फरीदाबाद जिले के ददसिया गांव की हैं। गांव के निवासी वरिष्ठ पत्रकार दुष्यंत त्यागी क्या बता रहे हैं पढ़ें 

कल्पना कीजिए क्या है यह?

पूछो तो जाने।

यह कोई भैसों का तबेला है।

 कोई भुसा का कोठा है?

या कोई कुड़ी घर है?

या फिर कोई बटोरा है। जहां पर गांव की महिलाएं को ऊप्ले पाथती हैं?

नहीं समझ पाऐ ना यह क्या है, आप कहेंगे यह कोई सरकारी खहन्डर है।

मैं आपको बताता हूं क्या है?

यह जो आप खंडहर देख रहे हो, एक समय में इसनें पूरे गांव को है ।हैजा चेचक माता का बुखार जैसी अनगिनत  महामारी से लोगों को बचाया है। मुझे अच्छी तरह से याद है जब मेरे गांव में यमुना नदी की बाढ़ आती थी। बाढ़ के बाद लोगों में महामारी का खतरा बढ़ता था।

तब यह खंडहर नुमा बिल्डिंग प्रहरी के रूप में गांव और उसके आसपास गांव के लोगों को महामारी से बचाती थी। गांव के लोगों को फरीदाबाद जाने की कोई आवश्यकता नहीं थी। और ना ही गांव के लोग शहर की तरफ देखते थे। और यह स्वास्थ्य सेवाएं पूरे साल  ग्रामीण लोगों को मिलती थी।

जी हां, मैं बात कर रहा हूं। अपने गांव के स्वास्थ्य केन्द्र डिस्पेंसरी ददसिया जिला फरीदाबाद हरियाणा। आज मैं देखता हूं मेरे गांव के आसपास गांवो मे जितने भी स्वास्थ्य केंद्र हैं। या तो वह खत्म हो चुके हैं या पर इसी तरह खहन्डर नुमाख बिल्डिंग के रुप में खड़े हुए हैं। इन स्वास्थ्य केन्द्र की बिल्डिंगों पर आंसू बहाने वाला कोई नहीं है। आज हर गांव में 8 से 10 मौतें करोना के कारण  हो चुकी है।

और गांव में हर घर में  एक दो बुखार से पीड़ित है। उनकी कोई भी सुध लेने वाला नहीं है।सरकार नाम की तो कोई चीज है ही नहीं है।  ऐसे में पीड़ित इलाज के अभाव मै दम तोड़ रहे हैं।

और जो बेचारे थोड़ी बहुत  जमा पूरी करके अपना प्राइवेट में इलाज करा रहे हैं। वहां पर प्राइवेट हॉस्पिटलों की लूट खसोट मची हुई है।वह इस आपदा को पैसा कमाने का मोका समझ रहे हैं। और अब बेचारे लोग इस आपदा में करें तो किया करें जाऐं तो कहा जाए?सिर्फ अपनी बेबसी पर रो रहे हैं। ये ददसिया की ही कहानी नहीं है देश में ऐसे लाखों ददसिया हैं और सोशल मीडिया पर आप देख ही रहें होने कहीं रेत में सैकड़ों लाशें दबाई जा रहीं हैं तो कहें गंगा यनुमा, नर्मदा में सैकड़ों लाशें बह रही हैं। 

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