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अकबर के वजन जितनी तलवार लेकर चलने वाले महाराणा प्रताप के साथ अपनों ने किया था विश्वासघात

Maharana-Pratap-News
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नई दिल्ली: आपस में एकता न रहे तो दूसरे इसका फायदा उठाते हैं। राजनीति की बात करें तो चौटाला, लालू और मुलायम के साथ कुछ ऐसा ही हुआ। इतिहास की बात करें  81 किलो का भाला, 72 किलो का कवच और  दो तलवारों का वजन  208 किलो, खुद उनका वजन 110 किलो जिनका नाम महाराणा प्रताप था। वो ऐसे ही नहीं हारे। अपनों ने ही विश्वासघात किया था।  देश आज  महाराणा प्रताप की जयन्ती मना रहा है। लोग उन्हें याद कर रहे हैं और श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहे हैं। 

 मेवाड के महाराणा प्रताप  15वीं सदी में महाराणा प्रताप के दौर में हिन्दुस्तान पर मुगल सम्राट अबकर का वर्चस्व था। उस समय के हिन्दुस्तान के अधिकांश राजा-महाराजाओं ने जब सम्राट अकबर की अधीनता स्वीकार करके उनके आगे नतमस्तक हो गए थे, तब उस दौर में भी महाराणा प्रताप ने अपनी स्वतंतत्रा व स्वाभिमान को नही त्यागा। विपरित परिस्थितियों से भी जूझते हुए महाराणा प्रताप ने सम्राट अकबर की गुलामी स्वीकार करने की बजाय युद्ध में हारने व अपने सगे भाई द्वारा विश्वासघात करने पर गुलामी की बजाय संघर्ष को महत्व दिया और वे अपना किला छोडक़र जंगलों में चले गए जहां उनके बेटे-बेटियों ने घास की रोटियां खाकर भी अपना जीवन यापन किया, लेकिन तब भी महाराणा प्रताप झुके नही और अपने स्वाभिमान व स्वतत्रंता के लिए लडना ही श्रेष्ठ समझा। हल्दी घाटी की लड़ाई का इतिहास बहुत बड़ा है जहाँ महाराणा प्रताप ने मुगलों ने लोहा लिया था। र महाराणा प्रताप को मरते दम तक अकबर अधीन करने में असफल ही रहा। अंततः महाराणा प्रताप की मृत्यु अपनी राजधानी चावंड में धनुष की डोर खींचने से उनकी आंत में लगने के कारण इलाज के बाद 57 वर्ष की उम्र में 29 जनवरी, 1597 को हो गई।

कहते हैं महाराणा प्रताप की मृत्यु का समाचार सुनकर अकबर की आंखों में भी प्रताप की अटल देशभक्ति को देखकर आंसू छलक आए थे। मुगल दरबार के कवि अब्दुर रहमान ने लिखा है कि इस दुनिया में सभी चीज खत्म होने वाली है। धन-दौलत खत्म हो जाएंगे लेकिन महान इंसान के गुण हमेशा जिंदा रहेंगे। प्रताप ने धन-दौलत को छोड़ दिया लेकिन अपना सिर कभी नहीं झुकाया।

 हिंद के सभी राजकुमारों में अकेले उन्होंने अपना सम्मान कायम रखा। और तो और एक बार अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन भारत के दौरे पर आ रहे थे, तो उन्होंने अपनी मां से पूछा… मैं आपके लिए भारत से क्या लेकर आऊं, तो उनकी मां ने कहा था भारत से तुम हल्दीघाटी की मिट्टी लेकर आना जिसे हजारों वीरों ने अपने रक्त से सींचा है। लेकिन, इन सब के उपरांत भी इतिहास की पाठ्य पुस्तकों में महाराणा प्रताप की वीरता के अध्याय पढ़ाने की बजाय अकबर की महानता के किस्से पढ़ाना इस सच्चे राष्ट्रनायक के बलिदान के साथ नाइंसाफी है। धरती के इस वीर पुत्र के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी कि जब उसकी महानता व माटी के प्रति कृतज्ञता की कहानी हरेक जन तक पहुंचायी जाएगी।

दिल्ली के बीजेपी विधायक मनजिंदर सिंह सिरसा ने एक ट्वीट किया है जिसमे उन्होंने लिखा है कि कमी हमारी एकता में ही रही होगी... वरना अकबर के वज़न जितनी तलवार और कवच पहनने वाले शूरवीर योद्धा #MaharanaPratap कैसे हार गये

हमारी इतिहास की किताबों ने ये कमी दुगुनी कर दी जो ऐसे वीरों की गाथा अनकही छोड़ दी और अकबर को महान बता दिया!
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