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इनके पूर्वज शाहजहां के काल में हाथी के मौजा पर करते थे नक्काशी

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सूरजकुंड (फरीदाबाद), 16 फरवरी। आइवरी कार्विंग (हाथी दांत की नक्काशी) में देश विदेश में पहचान बनाने वाले हस्तशिल्पी अब्दुल हसीब 37वें सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय शिल्प मेले में पहुंचे हुए हैं। उनकी मुगलकालीन नक्काशी कला को देखने के लिए पर्यटक उनके स्टॉल पर अवश्य रुकते हैं। अब्दुल हसीब आइवरी कार्विंग के लिए साल 2013 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी राष्ट्रीय पुरस्कार और साल 2018 में तत्कालीन उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू से शिल्प गुरु का सम्मान प्राप्त कर चुके हैं। इन्होंने अपनी स्टॉल पर मुगल कालीन नक्काशी को बखूबी संजोया हुआ है।

अब्दुल हबीस को नक्काशी की कला विरासत में मिली है। उनका दावा है कि उनके पूर्वज शाहजहां के काल में हाथी के मौजा पर नक्काशी किया करते थे और वर्ष 1892 से इनके पूर्वजों के नक्काशी के रिकॉर्ड को संजोकर रखा हुआ हैं। इसके अलावा हाथी दांत की नक्काशी के लिए 1974 में तत्कालीन राष्ट्रपति वीवी गिरी ने इनके दादा अब्दुल मलिक को राष्ट्रपति अवॉर्ड से सम्मानित किया था।

प्रतिबंध के बाद ऊंट की हड्डी पर करते हैं नक्काशी-

अब्दुल हसीब ने बताया कि हाथी दांत पर प्रतिबंध लगने के बाद इन्हें विरासत में मिली आइवरी कार्विंग को बचाने में बहुत परेशानी हुई थी। उसके स्थान पर ऊंट की हड्डियों पर नक्काशी का काम शुरू किया। इनकी कला को देश-विदेश में अत्यंत पसंद किया जाता है। ऊंट की हड्डी के अलावा वह लकड़ी पर भी नक्काशी करते हैं। वह जालीदार नक्काशी, वॉल पैनल, फोटो फ्रेम, बुक मार्कर, पेपर कटर, मुनव्वत की कारीगरी सहित कई तरह की नक्काशी करते हैं।

पत्थर के रंगों का होता है प्रयोग-

अब्दुल हसीब का कहना है कि लकड़ी पर होने वाली नक्काशी में रंग भरकर उसकी खूबसूरती को बढ़ाया जाता है। इसके लिए वह स्टोन कलर का उपयोग करते हैं। वह अपनी मुगल कालीन नक्काशी को कैमल बोन के अलावा कदम, चंदन, आबनूस की लकड़ी पर भी करते हैं।

अकबर के नौ रत्न हैं विशेष आकर्षण का केंद्र्र-

अब्दुल हसीब ने बताया कि अकबर काल में उनके नौ रत्न बेहद ही प्रसिद्ध थे। उन्होंने इन नौ रत्नों को चंदन की लडक़ी पर भी उतारा है और उसे पत्थर के आकर्षक रंगों से भी सजाया है। पर्यटक अकबर के नौ रत्नों में बहुत रुचि दिखा रहे है। अब्दुल हसीब की स्टॉल पर 200 से लेकर 20 हजार रुपए तक की कलाकृतियां उपलब्ध है।

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