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अप्रैल 2021 में दुखी फरीदाबाद की जनता को देख बिल में दुबक गए चूहों को MCF चुनावों में बिल में खदेडेगी जनता 

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फरीदाबाद - लटकते जा रहे नगर निगम चुनाव उन नेताओं पर भारी पड़ रहे हैं जिन्होंने पार्षद रहते हुए पिछले पांच साल अपने क्षेत्र की जनता की सेवा की थी। कुछ नेता पार्षद नहीं थे क्यू कि सीटें आरक्षित हो गईं थीं तो ऐसे नेताओं ने अपने परिजनों को मैदान में उतार दिया और विजय श्री का ही डंका बजा। पार्षद की सीट घर में ही आई और ये नेता जनता से पूरे पांच साल जुड़े रहे। अब वार्ड के लिए हुए ड्रा में इस बार इनमे से कइयों को मौका मिला और उनका वार्ड आरक्षित नहीं हुआ तो अब वो खुद पार्षद बनने का सपना देख रहे हैं लेकिन निगम चुनाव लटकने से उनका नुक्सान भी हो रहा है। 

कई वार्डों में ऐसे नेता अपनी जेब ढीली कर सफाई वगैरा करवा रहे हैं। इधर उधर से जुआड़ कर चन्दा मांग थोड़ी अपनी भी जेब ढीली कर सड़कें भी बनवा रहे हैं ताकि क्षेत्र की जनता नाराज न हो। कई वार्डों में निगम के कर्मचारी असली वाली सफाई नहीं करते, अपना कोई भी काम ठीक से नहीं करते और लोग ट्विटर वगैरा के माध्यम से सीएम से गली, नाली सफाई करवाने की गुहार लगाते हैं, किसी बिटिया की शादी है तो वो सीएम से गुहार लगाती है कि हमारे घर बरात आ सके इसलिए हमारे यहाँ सीवर वगैरा साफ़ कर गली में भरा हुआ गन्दा पानी निकलवाया जाए। कई बार सीएम ने ऐसे सीवर वगैरा साफ़ भी करवाए हैं। निगम के कर्मचारी सफाई के नाम पर कई वार्डों में खानापूर्ति करते हैं। ये बात पार्षदों और उनके परिजनों को पता है। इसलिए वो अब निजी सफाई कर्मी का सहारा ले रहे हैं और असली वाली सफाई करवा रहे हैं ताकि किसी भी हालत में उनकी पांच साल की मेहनत बेकार न जाए और जनता उनसे नाराज न हो। कई नेताओं से बात करने और मिलने के बाद ऐसा लिख रहा हूँ। 

बात करें 2017 निगम चुनावों की तो उस चुनाव में भयंकर मोदी लहर थी। लगभग 15 भाजपा नेता उस लहर में पार्षद बन गए। अगर लहर न होती तो इनमे से कई नेता अपनी गली का चुनाव भी न जीत पाते। हींग लगी न फिटकरी, रंग भी चोखा हो गया था इसलिए ऐसे नेता पूरे पांच साल तक लगभग मस्ती करते रहे और जनता का ध्यान नहीं दिया और ये सोंच रहे हैं कि फिर इन्हे भाजपा की टिकट मिल जाएगी और फिर पार्षद बन जाएंगे। काठ की हांडी बार-बार नही चढ़ती और ऐसे नेता इस बार शायद ही जमानत बचा सकें। जिन नेताओं ने पांच साल जनता के दर्द को अपना दर्द समझा है और पिछले चुनाव में पसीना बहा पार्षद की कुर्सी तक पहुंचे थे और अब निगम चुनाव लटक रहे हैं और वो निवर्तमान पार्षद हैं तब भी जनता के बीच में हैं और अपनी जेब ढीली कर जनता की समस्या को दूर करवा रहे हैं। ऐसे नेता फिर नगर निगम पहुंचेंगे , चुनाव जल्द हो या दो चार माह बाद हो। इनमे से अगर कुछ की उनकी पार्टियों ने टिकट भी काट दी तो भी वो चुनाव लड़ेंगे और जिस तरह से बल्लबगढ़ के दीपक चौधरी ने पिछले चुनाव में जीत पाई थी उसी तरह से ये नेता भी पा सकते हैं। वार्डबंदी के लिए हुए ड्रा में कुछ नेता इस बार भी अटक गए लेकिन उन्होंने अपने परिजनों को मैदान में उतारने का प्लान बनाया है। किसी की पत्नी तो किसी की बेटी तो किसी की पुत्र वधु इस बार मैदान में दिखेंगी। जिन्होंने मेहनत की है और जनता के सुख दुःख को अपना सुख दुःख समझा है उन्हें सफलता भी मिलेगी। 

पिछले साल यानि 2021 का अप्रैल का माह फरीदाबाद ही नहीं देश के लोग शायद ही कभी भूल सकें। फोन की घंटी बजती थी तो सामने वाला दो तीन बात ही बोलता था, हॉस्पिटल में बेड दिलवा दो, इंजेक्शन नहीं मिल रहा है कोई जुआड़ करो, आक्सीजन के सिलेंडर का कोई प्रबंध करो, अस्पताल ने चार लाख का बिल बना दिया है कुछ पैसे दे दो, मार्च 2021 के अंतिम हफ्ते और अप्रैल के तीसरे हफ्ते तक का मंजर बहुत अजीब था। यहाँ तक कि ऐसे भी रुला देने वाले फोन आये कि निधन हो गया है, शमसान घाट में लम्बी लाइन लगी है, अंतिम संस्कार जल्द करवा दो। दोस्तों वो अलग ही मंजर था। उस समय जनता की मदद करने में 5 से 7  पार्षद ही आगे आये थे। अन्य बिल में किसी चूहे की तरह दुबक गए थे जैसे उनके पीछे बिल्ली पडी हो। ऐसे चूहों को जनता नहीं भूली है। सबक सिखाने को तैयार बैठी है लेकिन निगम चुनाव लटक रहे हैं। किसी भी चुनाव से पहले  बड़ी पार्टियां अपनी तरफ से सर्वे करवाती हैं और भाजपा भी निगम चुनाव से पहले सर्वे शायद जरूर करवाए और ऐसे चूहों की टिकट कुतर दे। वैसे फरीदाबाद में विपक्ष महाकमजोर है इसलिए कुछ चूहे मैदान मार भी सकते हैं। 

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