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गुर्जर समाज के गणमान्य व्यक्तियों ने पूर्व केंद्रीय मंत्री राजेश पायलट को माला अर्पण कर उनको याद किया

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हमें ख़बरें Email: psrajput75@gmail. WhatsApp: 9810788060 पर भेजें (Pushpendra Singh Rajput)

लखनऊ । 10 फरवरी सन 1945 को  उत्तर प्रदेश के जिला गौतम बुध नगर ( तब जिला गाजियाबाद ) के गाँव वेदपुरा में एक गुर्जर परिवार में  जन्मे राजेश्वर प्रसाद के पिता एक सैनिक थे । 10 वर्ष की उम्र तक साधारण जीवन जीते राजेश्वर प्रसाद के परिवार पर संकट तब आया जब इनके पिता का आकस्मिक देहांत हो गया , उस वक्त इनकी उम्र 11 साल थी।   परिवार में माता , विवाह योग्य दो बहनों और एक छोटे भाई का दायित्व इनके ऊपर आ गया,  जिससे जिम्मेदारी की भावना बहुत कम उम्र  में आ गयी । उस उम्र में पैदल कई किलोमीटर नंगे पैर चलते हुए भी शिक्षा पूरी करने की लगन और कुछ करने की चाहत लिए राजेश्वर प्रसाद को कुछ सालो के बाद गाँव छोड़कर दिल्ली आने का निर्णय लेना पड़ा , जहाँ उनके  चचेरे भाई की दूध की डेरी थी ।

युवावस्था में राजेश पायलट -

ये समय राजेश्वर प्रसाद के लिए कड़ी मेहनत का था । राजेश सुबह जल्दी उठते , दूध निकालते और मंत्रियो की कोठी में दूध देने जाते फिर जल्दी आकर स्कूल भी जाते।  इसी तरह शाम को भी दूध बाटकर फिर पढने के लिए समय निकालते।  ये वो कठिन समय था जब राजेश्वर प्रसाद को संघर्ष में लैंप पोस्ट के नीचे भी पढ़ाई करनी पड़ी । लेकिन ये पीछे नहीं हटे और दोनों बहनों की शादी करने के अलावा छोटे भाई को  भी शिक्षा दिलवाई  लेकिन दुर्भाग्यवश छोटे भाई की आकस्मिक म्रत्यु ने इनको अंदर से तोड़ दिया ।

परिवार की जिम्मेदारी संभालते और दूध सप्लाई का काम करते करते ही इन्होने अपनी ग्रेजुएशन पूरी की और सगे भाई से ज्यादा मानने वाले इनके चचेरे भाई नत्थी सिंह ने इनको पूरा सहयोग किया और ये एयर फ़ोर्स में भर्ती हो  गये  ।वायु सेना में प्रशिक्षण के बाद वे लड़ाकू विमान के पायलट बने और फिर पंद्रह वर्षो की अथक मेहनत के बाद प्रमोशन पाकर स्क्वार्डन लीडर बने ! उन्होंने 1971 के भारत पाक युद्ध में भी भाग लिया और बहादुरी के लिए पदक भी मिलाrajesh pilot राजेश पायलट लेकिन लुटियन जोंस के बंगलो में बचपन में दूध बेचने वाले राजेश पायलट की जिन्दगी उन्हें वायु सेना से फिर वापस उन्ही बंगलो तक ले जाना चाहती थी जहां उनका कष्ट भरा समय बीता था ..शायद उन्हें अपने कहे वो शब्द चरित्रार्थ करने थे जो राजेश पायलट की पहचान बन गये थे –

“जब  किसानो और मजदूरों  के बच्चे  पढ़ लिख कर उन कुर्सियों  तक पहुचेगे जहाँ से नीतियाँ बनती और क्रियान्वित होती है तब  भारत का सही मायनों में विकास होगा “ . 1979 में नौकरी से इस्तीफा देकर राजेश्वर प्रसाद जब भरतपुर में कोंग्रेस का पर्चा दाखिल कर रहे थे तो वहां  के कार्यकर्ताओं ने उनसे निवेदन किया कि वे अपने नाम के साथ “पायलट ” लिखे । उन्होंने उनका आग्रह स्वीकार करके राजेश पायलट( Rajesh Pilot) के नाम से परचा भरा और जब वो बाहर निकले तो “राजेश पायलट जिंदाबाद  ” के नारे लग रहे थे ।उन्होंने भरतपुर की सीट से वहां के राजपरिवार की सदस्य महारानी को हराकर पहला चुनाव जीता और इसी के साथ राजनीति की दुनिया में उन्होंने कदम रखा ! इसके बाद उन्होंने कई चुनाव जीते और 1991 से 1993 तक टेलिकॉम मिनिस्टर रहे और 1993 से 1995 तक आंतरिक सुरक्षा मंत्री रहे ।

राजेश पायलट इसी दौरान आंतरिक सुरक्षा मंत्री रहते हुए पायलट जी ने देखा कि एक विवादस्पद तांत्रिक चंद्रास्वामी जिसके सामने बड़े बड़े मंत्री और अधिकारीगण सर झुकाते थे और जिसे तत्कालीन प्रधानमन्त्री पी वी नरसिम्हा राव का करीबी भी माना जाता था उसके खिलाफ जांच बैठाने की किसी की हिम्मत नहीं होती थी ,उसके खिलाफ शिकायत आने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हो रही थी , सत्ता में बेठे लोगो का भी मूक समर्थन उसे प्राप्त था , इसके अलावा सबूतों की कमी का हवाला देकर भी गिरफ्तारी न करने का दवाब भी था जिससे किसी मामले में पायलट के सामने भी संकट खड़ा हो सकता था। 

ग्रामीण भारत से उनका जुड़ाव इतना मजबूत था कि उनके दिल्ली स्थित सरकारी आवास पर कोई भी देशवासी उनसे मिल सकता था , सबकी शिकायते सुनना और बड़े आराम से सबको मनाना उनकी खासियत थी।  

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