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चमोली में हुआ था हाइड्रोपावर प्रोजेक्‍ट लगाने का विरोध, जाने किसकी गलती से चिपको आंदोलन की धरती पर हुई तवाही 

Chipko-Andolan-Chamoli
हमें ख़बरें Email: psrajput75@gmail. WhatsApp: 9810788060 पर भेजें (Pushpendra Singh Rajput)

नई दिल्ली- किसान आंदोलन को 75 दिन से ज्यादा हो रहे हैं। 200 से ज्यादा किसानों की मौत हो चुकी है। किसानों का कहना है कि सरकार अपनी जिद पर अड़ी है। 26 जनवरी के पहले सरकार थोड़ा झुक भी रही थी और कानूनों में कुछ बदलाव की बात पर राजी हो गई थी लेकिन लाल किला काण्ड से सरकार को राहत मिली और किसान आंदोलन को नुक्सान हुआ। अचानक टिकैत न रोते  तो अब तक आंदोलन ख़त्म हो चुका होता और किसानों को कुछ न मिलता। ये तो किसान आंदोलन की बात है। देश में युवा पीढ़ी को नहीं पता होगा कि लगभग 50 साल पहले चिपको आंदोलन भी हुआ था। यह ह आन्दोलन तत्कालीन उत्तर प्रदेश के चमोली जिले में सन 1970 में प्रारम्भ हुआ। एक दशक के अन्दर यह पूरे उत्तराखण्ड क्षेत्र में फैल गया था। चिपको आन्दोलन की एक मुख्य बात थी कि इसमें स्त्रियों ने भारी संख्या में भाग लिया था। इस आन्दोलन की शुरुवात 1970 में भारत के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुन्दरलाल बहुगुणा, कामरेड गोविन्द सिंह रावत, चण्डीप्रसाद भट्ट तथा श्रीमती गौरादेवी के नेत्रत्व मे हुई थी। 

 चिपको आंदोलन वनों का अव्यावहारिक कटान रोकने और वनों पर आश्रित लोगों के वनाधिकारों की रक्षा का आंदोलन था रेणी में 2400 से अधिक पेड़ों को काटा जाना था, इसलिए इस पर वन विभाग और ठेकेदार जान लडाने को तैयार बैठे थे जिसे गौरा देवी जी के नेतृत्व में रेणी गांव की 27 महिलाओं ने प्राणों की बाजी लगाकर असफल कर दिया था।

उत्तर प्रदेश (वर्तमान उत्तराखण्ड) में इस आन्दोलन ने 1980 में तब एक बड़ी जीत हासिल की, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने प्रदेश के हिमालयी वनों में वृक्षों की कटाई पर 15 वर्षों के लिए रोक लगा दी। बाद के वर्षों में यह आन्दोलन पूर्व में बिहार, पश्चिम में राजस्थान, उत्तर में हिमाचल प्रदेश, दक्षिण में कर्नाटक और मध्य भारत में विंध्य तक फैला गया था। उत्तर प्रदेश में प्रतिबंध के अलावा यह आन्दोलन पश्चिमी घाट और विंध्य पर्वतमाला में वृक्षों की कटाई को रोकने में सफल रहा। साथ ही यह लोगों की आवश्यकताओं और पर्यावरण के प्रति अधिक सचेत प्राकृतिक संसाधन नीति के लिए दबाब बनाने में भी सफल रहा।।

किसान आंदोलन के बीच हम आपको चिपको आंदोलन की कहानी इस लिए बता रहे हैं क्यू कि कल चमोली में ही जल प्रलय से सैकड़ों लोग लापता हैं। तमाम लोगों के शव मिले हैं। इस जल प्रलय का कारण मानवीय भूल भी हो सकती है क्यू  कि चिपको आंदोलन की धरती पर ही जल प्रलय हुआ। ग्लेशिएर टूटा। अब जानकारी मिल रही है कि कृषि कानूनों की तरह ही यहाँ हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट का विरोध हुआ था। मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा था। 

रैणी गांव के कुंदन सिंह ने नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।  उनके वकील अभिजय नेगी  के अनुसार ब्लास्टिंग की वजह से वन्य जीव परेशान हैं और वे भागकर गांवों की ओर आ रहे हैं।   हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट बना रही कंपनी ने नदी किनारे स्टोन क्रशर यूनिट लगा दिए हैं।  गांववालों को उस हिस्से में जाने से रोक दिया गया है, जहां गौरा देवी ने कभी पेड़ों को गले लगाया था।  याचिकाकर्ता के वकील ने कहा था  कि प्रोजेक्ट के निर्माण से पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है, साथ ही चिपको आंदोलन के वन मार्ग को बंद करने से ग्रामीण आहत हैं। पिछले साल साल ये याचिका दायर की गई थी लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। सरकार ने भी विरोध करने वालों को हलके में लिया और कल जो हुआ दुनिया ने देखा। अब भी न जानें कितने शव निकालेंगे। 

 चमोली में ग्लेशियर टूटने के बाद आई भीषण त्रासदी के बाद पूर्व केंद्रीय नदी विकास और गंगा कल्याण मंत्री उमा भारती ने बड़ा बयान दिया है।  भारती ने कहा है कि जब वो मंत्री थीं उस वक्त उन्होंने गंगा नदी पर बनने वाले कई प्रोजेक्ट्स को रोका था।  उमा भारती ने ट्वीट किया है कि जब वो मंत्री थी तब उन्होंने अपने मंत्रालय के तरफ से हिमालय उत्तराखंड के बांधों के बारे में जो हलफनामा दिया था उसमें यही आग्रह किया था कि हिमालय एक बहुत संवेदनशील स्थान है इसलिए गंगा और उसकी मुख्य सहायक नदियों पर पावर प्रोजेक्ट नहीं बनने चाहिए. इससे उत्तराखंड में बिजली की आपूर्ति प्रभावित होती है तो उसे नेशनल ग्रिड से पूरा किया जाए। 

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