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लाल किला बवाल- भाजपा पर बरसे विद्रोही, दीप सिद्धू को भाजपा समर्थक बताया 

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27 जनवरी 2021- स्वयंसेवी संस्था ग्रामीण भारत के अध्यक्ष एवं हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रदेश प्रवक्ता वेदप्रकाश ने एक बयान में कहा कि 26 जनवरी को किसानों की दिल्ली टैऊक्टर परेड बहुत ही सफल रही और अधिकांश किसानों ने संयम का परिचय दिया, जो प्रशंसनीय है। विद्रोही ने कहा कि टैऊक्टर परेड में हुई हिंसा को किसी भी तरह स्वीकार नही किया जा सकता है, क्योंकि लोकतंत्र में हिंसा का कोई स्थान नही है। दिल्ली टैऊक्टर परेड में कुछ स्थान पर हिंसा क्यों हुई, इसके लिए कौन जिम्मेदार है, इसकी मोदी सरकार विस्तृत निष्पक्ष जांच करवाकर सम्बन्धित लोगों पर कानूनी कार्रवाई कर सकती है। पर इस हिंसा का बहाना बनाकर मीडिया का एग वर्ग जिस तरह जहरीली रिपोर्टिंग करके किसानों को बदनाम कर रहा है, वह भी चिंता का विषय है। किसानों को बदनाम करने वालों को नही भूलना चाहिए कि दिल्ली किसान टैऊक्टर परेड में लगभग दो लाख टैऊक्टर शामिल थे और यदि किसान हिंसा में विश्वास करते तो स्थिति कितनी भयावह हो सकती थी, इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।

विद्रोही ने कहा कि इस तथ्य को भी नही भूलना चाहिए कि देश के इतिहास में पहली बार दो लाख टैऊक्टरों के साथ किसानों ने परेड की है, पर किसानों की टैऊक्टर परेड से दिल्ली के किसी भी नागरिक व किसी की भी सम्पत्ति को एक पैसे की भी क्षति किसानों ने नही पहुंचाई है। मुठ्ठीभर किसानों को छोड़कर सभी किसानों ने जो अनुशासन का परिचय दिया है, वह सराहनीय है। वहीं इस तथ्य को भी नही भूलाना चाहिए कि लालकिले पर जिन अराजक तत्वों ने निशान साहिब का झंडा फहराया, वे मोदी-संघ के जानेमाने भक्त है और जो पंजाबी फिल्मी कलाकार इन सबका का नेतृत्व कर रहा था, वह 2019 लोकसभा चुनाव में गुरदासपुर से भाजपा उम्मीदवार सन्नी दओल का चुनावी एजेंट भी था। इस फिल्मी कलाकार की मोदी-अमित शाह से नजदीकिया जगजाहिर है। विद्रोही ने कहा कि पुुलिस सरंक्षण में जिस तरह अडानी-अंबानी के न्यूज चैनल घटनाचक्र की भड़काऊ मीडिया रिपोर्टिग कर रहे थे, क्या वह जायज थी? पुलिस व सरकार ने इसे रोकने की पहल क्यों नही की? सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि जब मीडिया के एक वर्ग को पता था कि कुछ अराजक तत्व लालकिले तक जाने का प्लान बना रहे है तो ऐसी जानकारी खुफिया एजेंसियों के पास क्यों नही थी? या जानकारी होते हुए भी मोदी सरकार के इशारे पर किसान आंदोलन को बदनाम करने के लिए इस ओर जान-बूझकर आंखे मूंदी रखी?

विद्रोही ने कहा कि लोकतंत्र सत्ता अहंकार से नही चलता अपितु लोकतंत्र में सत्तारूढ़ दल जनभावनाओं के अनुरूप फैसला ले, यही लोकतंत्र है। 26 जनवरी को दिल्ली में ऐतिहासिक टैऊक्टर परेड करके व देशभर में काले कृषि कानूनों के खिलाफ रोष जताकर किसानों ने मोदी सरकार को संदेश दे दिया कि देश के किसान तीन कृषि कानून नही चाहते। सवाल उठता है कि जब देश के किसान कृषि कानून नही चाहते है तो मोदी-भाजपा सरकार इन काले कानूनों को जबरदस्ती थोपकर कथित किसान हित के नाम पर राजहठ क्यों कर रही है? लोकराज में यदि लोकलाज नही होती तो उस राज को लोकतांत्रिक नही कहा जा सकता। ऐसी स्थिति में विद्रोही ने मोदी सरकार से आग्रह किया कि वह चंद बड़े पंूजीपतियों की दलाली करने से बाज आये और तत्काल कृषि कानूनों को वापिस लेकर व्यर्थ के टकराव से देश का माहौल खराब न करे।



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