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पैसा और मानवता, ममता सिंह का ख़ास लेख

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सत्य को उजागर करती हुई कुछ सामाजिक एवं परिवारिक बातें... 

वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान।। 

उमड़ कर आंखों से चुपचाप वही होगी कविता अनजान।।

पैसा और मानवता 

पैसा जीवन की मूलभूत आवश्यकता है इससे इनकार नहीं किया जा सकता लेकिन पैसा ही जीवन है आजकल के कुछ लोगों की सोच बन गई है इस सोच से हमारे प्रेम पूर्ण संबंधों में कड़वाहट आ गई है, मानवता का हनन हुआ है हमारे संबंध पैसे पर डिपेंड हो गए हैं हमारी अच्छाइयां पैसे के अभाव में किताबी ज्ञान मात्र रह गई हैं क्योंकि पैसे की भाषा सबको समझ में आती है अच्छा ही होना पर्याप्त नहीं है अच्छा होने के साथ-साथ पास में पैसे भी होना उतना ही आवश्यक है क्योंकि अच्छाई की वैल्यू पैसे से है पैसा सब पर हावी हो गया है...

पैसे के गुण और अवगुण 

पैसा चैन की नींद सुलाता है पैसा ही जगाता है, पैसा ही रुलाता है, पैसा पाप भी कराता है तो पैसा पुण्य कराता है, पैसा सुख है, पैसा दुख है, पैसा समस्या है तो पैसा ही समाधान है पैसे को किस-किस की संज्ञा दी जाए पैसे में गुण और अवगुण दोनों हैं अच्छे के हाथ जाएगा तो नेक काम कर जाएगा बुरे के हाथ गया तो गलत असर छोड़ जाएगा मैंने पैसे से रिलेशन को बिगड़ते देखा है इसलिए बाध्य हो गई यह सब लिखने के लिए पैसा शान, सम्मान और आदर को बढ़ावा देती है इसकी कमी पग पग पर अपमान को बढ़ावा देती है फिर भी पैसे में खिंचाव है पैसे की अभिव्यक्ति बड़ी कठिन है पैसा कमाना बुराई नहीं है लेकिन पैसे से मानवता का खत्म हो जाना यह गलत है

पैसा ने हमारे दिमाग को जकड़ लिया है जिस मां की गोद में खेल कर बड़े हुए जिस पिता की उंगली पकड़कर चलना सीखे उस पैसे ने इंसान को इतना कमजोर कर दिया है कि हम उनको पहचानते तक नहीं पहचानने की तो बात छोड़ो हम उन पर हाथ उठाने से भी नहीं चूकते पैसा अपनों के साथ हिंसा भी कराती है इसमें दो राय नहीं है पैसा इंसान को चलायेमान बनाती है पैसे का अभाव हमें पग पग पर सुस्त और कमजोर बना देती है अच्छाइयों की वैल्यू पैसे से है पैसा हिम्मत है पैसा साहस है पैसा मूक है फिर भी बहुत कुछ बोलता है नाउम्मीद पर उम्मीद की किरण है पैसा ने इंसान के विचारों को सीमित कर दिया है पैसा कभी अपनेपन का एहसास कराता है तो कभी अपने लोगों से दूर भी कर देता है

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