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जैसे चम्बल के डकैतों का हुआ अंत वैसे ही कभी न कभी आधुनिक डाकुओं का भी होगा बुरा हाल 

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नई दिल्ली- देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के तमाम जिलों के लोग नौटंकी बहुत पसंद करते हैं और जहां कहीं नौटंकी का प्रोग्राम होता है वहाँ लोग कई किलोमीटर से चलकर लोग पहुँचते हैं। नौटंकी पूरी रात्रि चलती है। शुरुआत में डांस वगैरा का कार्यक्रम होता है उसके बाद कोई न कोई नाटक का मंचन होता है। ये नाटक चार से पांच घंटे के होते हैं और लोग बिना ऊबे इन्हे देखते रहते हैं। समय थोड़ा बदल गया है और इन नाटकों में आधुनिकता आ गई है लेकिन नौटंकी अब भी जारी है। दो दशक पहले इन नौटंकियों में अधिकतर चम्बल के डाकुओं की कहानी होती थी। फ़िलहाल चम्बल डाकुओं से खाली है। कभी कभार ही उन डाकुओं का नाम लिया जाता है। उन नौटंकियों में देखने को मिलता था कि चम्बल के डाकू, डाकू कैसे बने और किस हालात में बने और ये भी दिखाया जाता था कि तमाम डाकू अमीरों को लूटते थे, गरीबों में बांटते थे। गलत तरीके से पैसे कमाने वालों को ही लूटते थे। उनके अंदर मानवता भी थी। गरीब को कभी परेशान नहीं करते थे और भेष बदलकर गरीबों की मदद करने भी जाते थे। 

आधुनिक युग में डकैत भी आधुनिक हो गए। लूट खसोट की बारदातें अब भी जारी हैं लेकिन ये डकैत चम्बल के बीहड़ों में नहीं रहते। आलीशान कोठियों में रहते हैं। सुख, सुविधा से संपन्न हैं और इन पर कोई सवाल भी नहीं उठा पाता है। ये जनता को आधुनिक तरीके से लूट रहे हैं। इनमे से अधिकतर डाकुओं में मानवता का नामोनिशान नहीं है जैसे चम्बल के डाकुओं में होता था। इन डाकुओं में कोई नेता के भेष में है तो कोई किसी विभाग के अधिकारी के भेष में तो किसी ने निजी स्कूल खोल लिए हैं। इन डाकुओं में तमाम जेल में भी हैं लेकिन इनकी संख्या बढ़ती जा रही है। 

कॉरोनाकाल में लगभग 11 महीने स्कूल बंद रहे। ऑनलाइन पढ़ाई के नाम पर तमाम स्कूल छात्रों से फीस वसूलते रहे। हाल में हरियाणा में छठीं से आठवीं तक के स्कूल खुले और चौंकाने वाली बातें सामने आ रहीं हैं। कुछ आधुनिक डकैत मासूम बच्चों को रुला रहे हैं। जिन मासूम बच्चों के घर स्मार्ट फोन नहीं है और उन्होंने कभी ऑनलाइन क्लास ज्वाइन नहीं किया उन बच्चों से पिछले मार्च से अब तक की फीस माँगी जा रही है। ऐसे बच्चों के परिजन भी एक तरह से रो ही रहे हैं क्यू आधुनिक डकैतों ने बच्चों को धमकी दे दी है कि पूरी फीस दो तब अगले क्लास में लेंगे नहीं तो इस साल भी पिछले क्लास में ही रहो। तमाम डकैत कोरोना के कारण जूते जुर्राब, कॉपी किताब नहीं बेंच पाए और अब वो सारा नुकसान इन बच्चों के परिजनों से वसूलना चाहते हैं। 

कोरोना के कारण जितना नुक्सान इन डकैतों का हुआ है उतना ही आम जनता का भी हुआ है। कई महीने तक जनता काम काज नहीं कर सकी। उद्योग बंद रहे। अन्य व्यापार बंद रहे। इन डकैतों को थोड़ा सोंचना चाहिए लेकिन ये कुछ भी नहीं सोंच रहे हैं। अगर ये बच्चों के परिजनों से ये कह देते कि नुक्सान में आप ही हैं और हम भी और हम दो कदम पीछे हट रहे हैं और आप दो कदम आगे बढ़ें तो बात बन जाती लेकिन आधुनिक डकैत पीछे हटने को तैयार नहीं हैं और मासूम बच्चों को रुला रहे हैं। उनका एक साल खराब कर देने की धमकी दे रहे हैं। 
मजबूरन लोग अपने बच्चों को इन डकैतों के स्कूल से निकालने लगे हैं क्यू कि उन्हें पता है, चीखने चिल्लाने से कोई फायदा नहीं क्यू कि डकैतों ने अपने दफ्तर में बड़े-बड़े नेताओं के साथ फोटों की बड़ी फ्रेम लगवा टांग रखा है। तमाम बड़े नेताओं को माला पहना रहे हैं। 

ऐसा नहीं है कि सभी निजी स्कूल वाले गलत हैं। कॉरोनकाल में तमाम ऐसे निजी स्कूल वाले में सामने आये जिन्होंने बच्चों की कई महीने की फीस माफ़ करने का एलान किया। कई निजी स्कूल मालिक गरीबों को भोजन बांटते दिखे। कुछ स्कूल मालिक समाज को गंदा कर रहे हैं। इनमे से अधिकांश हो हैं जिन्हे किसी सत्ताधारी का साथ मिला है या वो खुद किसी पार्टी से जुड़े हैं। हरियाणा सरकार कमजोर यूं ही नहीं हो रही है ऐसे कई कारण हैं। गरीब को रुलाने वाला भले ही अरबों कमा ले लेकिन चैन की साँस शायद ही ले पायेगा। इंसानियत से बढ़कर दुनिया  में कुछ और नहीं। ये असली डाकू हैं जो मासूमों को रुला रहे हैं। भगवान इन्हे कभी माफ़ नहीं करेगा। जैसे चम्बल वाले ख़त्म हुए वैसे इन डकैतों का भी खात्मा हो। हो सकता है थोड़ा समय लग जाए क्यू कि देश की सरकार??
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