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हरियाणा नगरपालिका (द्वितीय संशोधन) विधेयक और नगर निगम (द्वितीय संशोधन) विधेयक पास

Manohar-Lal-Haryana
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चंडीगढ़-  हरियाणा नगरपालिका अधिनियम, 1973 को आगे संशोधित करने के लिए हरियाणा नगरपालिका (द्वितीय संशोधन) विधेयक, 2020 पारित किया गया है। विधि एवं विधायी विभाग की अधिसूचना संख्या लैज. 34/2019 द्वारा हरियाणा नगर पालिका अधिनियम,1973 की सम्बन्धित धाराओं में नगर परिषद/नगर पालिका में प्रधान के पद का चुनाव सीधे तौर पर योग्य मतदाताओं द्वारा करने का प्रावधान किया गया था। तदनुसार हरियाणा नगर पालिका निर्वाचन नियमावली, 1978 भी संशोधन की प्रक्रिया में हैं। 

 इससे पूर्व, हरियाणा नगर पालिका अधिनियम, 1973 की सम्बन्धित धाराओं में प्रधान का चुनाव नगर परिषद/नगर पालिका के निर्वाचित सदस्यों द्वारा करने का प्रावधान था तथा सीधे तौर पर प्रधान का चुनाव करवाने के उद्देश्य से अधिनियम की सम्बन्धित धाराओं में संशोधन करते समय ‘प्रधान’ शब्द का लोप किया गया था। इस संदर्भ में, अधिनियम की धारा 21 जहाँ पर प्रधान तथा उप-प्रधान को अविश्वास प्रस्ताव के द्वारा हटाये जाने का प्रावधान था, में से ‘प्रधान’ शब्द का भी लोप किया गया, जिसके कारण वर्तमान में प्रधान को अविश्वास प्रस्ताव के द्वारा हटाये जाने के लिए अधिनियम में कोई प्रावधान नहीं है।


          यह पाया किया गया है कि  पूर्व की भांति अधिनियम में सीधे तौर पर योग्य मतदाताओं द्वारा निर्वाचित प्रधान के विरुद्ध भी अविश्वास प्रस्ताव लाने का प्रावधान होना चाहिये, ताकि प्रधान यदि जनहित में कार्य न करे और सम्बन्धित नगर परिषद्/नगर पालिका के तीन-चौथाई निर्वाचित सदस्यों का विश्वास ना रख सके तो प्रधान के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सके। इसलिये हरियाणा नगर पालिका अधिनियम, 1973 में सीधे तौर पर योग्य मतदाताओं द्वारा निर्वाचित प्रधान के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने का प्रावधान करन हेतु ‘प्रधान तथा उप प्रधान’ शीर्षक के पश्चात नई धारा 17क तथा 17ख को जोड़ा गया है। इसी क्रम में अधिनियम की धारा 21 की उप-धारा (4) का लोप किया गया है।

 हरियाणा नगर निगम अधिनियम, 1994 को आगे संशोधित करने के लिए हरियाणा नगर निगम (द्वितीय संशोधन) विधेयक, 2020 पारित किया गया है।


          विधि एवं विधायी विभाग की अधिसूचना लैज.33/2018, 4 अक्तूबर, 2018 द्वारा हरियाणा नगर निगम अधिनियम, 1994 की सम्बन्धित धाराओं में नगर निगम के महापौर के चुनाव सीधे तौर पर योग्य मतदाताओं द्वारा करने का प्रावधान किया गया था। तदोपरांत, शहरी स्थानीय विभाग की अधिसूचना संख्या 2/10/2018-आर-ढ्ढढ्ढ द्वारा इस बारे हरियाणा नगर निगम निर्वाचन नियमावली,1994 में संशोधन करते हुए पांच नगर निगमों नामत: रोहतक, पानीपत, करनाल, यमुनानगर और हिसार में महापौर के चुनाव सीधे तौर पर योग्य मतदाताओं द्वारा 16 दिसम्बर, 2018 को करवाए गए।

इससे पूर्व, हरियाणा नगर निगम अधिनियम, 1994 की सम्बन्धित धाराओं में महापौर का चुनाव नगर निगम के निर्वाचित सदस्यों द्वारा करने का प्रावधान था तथा सीधे तौर पर महापौर का चुनाव करवाने के उद्देश्य से अधिनियम की सम्बन्धित धाराओं में संशोधन करते समय ‘महापौर’ शब्द का लोप कर दिया गया था। इस संदर्भ में, अधिनियम की धारा 37 जहां पर महापौर, वरिष्ठ उप-महापौर व उप-महापौर को अविश्वास प्रस्ताव के द्वारा हटाए जाने का प्रावधान था, में से ‘महापौर’ शब्द का भी लोप किया गया, जिसके कारण वर्तमान में महापौर को अविश्वास प्रस्ताव के द्वारा हटाए जाने के लिए अधिनियम में कोई प्रावधान नहीं है।

यह महसूस किया गया है कि पूर्व की भांति अधिनियम में सीधे तौर पर योग्य मतदाताओं द्वारा निर्वाचित महापौर के विरुद्ध भी अविश्वास प्रस्ताव लाने का प्रावधान होना चाहिए, ताकि महापौर यदि जनहित में कार्य न करे और सम्बन्धित नगर निगम के तीन-चौथाई निर्वाचित सदस्यों का विश्वास न रख सके, तो महापौर के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सके। इसलिए, सीधे तौर पर योग्य मतदाताओं के द्वारा निर्वाचित महापौर के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने का प्रावधान करने के लिए हरियाणा नगर निगम अधिनियम, 1994 में धारा 37ख को जोड़ा गया है। आगे, महापौर की अनुपस्थिति में वरिष्ठ उप-महापौर तथा इनकी अनुपस्थिति में उप-महापौर या इन सभी की अनुपस्थिति में सम्बन्धित मण्डल आयुक्त द्वारा महापौर का कार्य करने हेतु प्रावधान करने के लिए धारा 37ग को जोड़ा गया है।

  हरियाणा नगर निगम अधिनियम, 1994 की धारा 164(ग) के दूसरे परंतुक में वर्णित प्रावधान के अनुसार, नगर निगमों की दुकानों और घरों को केवल उन कब्जाधारकों को कलक्टर दर पर हस्तांतरित किया जा सकता है जो पिछले 20 वर्षों से पट्टा/किराया/लाइसेंस शुल्क/तहबाजारी या अन्यथा अनुसार सक्षम प्राधिकारी की अनुमति से उस पर काबिज है।

यह देखा गया है कि पालिकाओं की लीज/किराया/लाइसेंस शुल्क/तहबाजारी से करें या अन्यथा दुकानों और मकानों की बिक्री के लिए कलैक्टर रेट के अनुसार एकमुश्त भुगतान करने की सामथ्र्य इन दुकानदारों की आय के अनुसार नहीं है। अत: इन दुकानों/मकानों की बिक्री के लिए मूल्य उस पर कब्जे की अवधि के साथ-साथ उसके आकार के साथ जोड़ा जाना चाहिए ताकि इसे खरीदने वालों के लिए इसेअधिक यथार्थवादी और व्यवहारिक बनाया जा सके।


          आगे, नगर निगमों द्वारा अर्जित मामूली किराये या आय, इन नगरपालिका की दुकानों और घरों की बिक्री से प्राप्त आय पर अर्जित ब्याज से भी कम हो सकता है। यह भी महसूस किया गया है कि सरकार द्वारा बनाए गए नियमों और शर्तों को शामिल करके एक नीति बनाई जानी चाहिए, जो विभिन्न वर्गों और व्यक्तियों की श्रेणियों और नगर निगमों की दुकानों और घरों के सम्बन्ध में स्वामित्व अधिकार देने के लिए अलग-अलग हो सकती है जो पट्टे/किराये/लाइसेंस शुल्क/तहबाजारी या अन्यथा के आधार पर पिछले 20 वर्षों के लिए है।

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