नई दिल्ली- पीएफआई क्या चाहती है, देश को तवाह करना चाहती है या इरादे कुछ और हैं। उत्तर प्रदेश, दिल्ली के बाद अब बेंगलुरु दंगे में भी पीएफआई का ही हाँथ बताया जा रहा है। बेंगलुरु दंगे भी सुनियोजित थे। बेंगलुरु हिंसा की जाँच कर रहे अधिकारियों को कुछ ऐसे इनपुट मिले हैं जिससे साबित होता है कि हिंसा में इसी संगठन का हाथ था। इस संगठन की बात करें तो पीएफआई केरल से संचालित होने वाला एक कट्टर इस्लामिक संगठन है। पीएफआई की स्थापना 1993 में बने नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट से निकलकर हुई है. 1992 में बाबरी मस्जिद ढहने के बाद नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट नाम से एक संगठन बना था। अब ये संगठन पूरे देश में सक्रीय है और कई जगहों पर हुए दंगों में इसी संगठन का हाथ निकला।
सोशल मीडिया पर लोगों का कहना है कि शाहीन बाग बेंगलुरु में देखा जाता है। सीएए के प्रदर्शनों में महिलाओं को कट्टरपंथी और जिहादी भीड़ के लिए ढाल देखा। रणनीति बेंगलुरु में खुद को दोहराती है। शेष भारत के लिए चेतावनी, यह मॉडल जिहादी मार्क्सवादी योजनाओं और पीएफआई फंडों की बदौलत पूरे भारत में है।
बेंगलुरु पुलिस ने डीजे हलाली पुलिस थाना क्षेत्र में हिंसा भड़काने के आरोप में सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया यानी एसडीपीआई नेता मुजामिल पाशा को गिरफ्तार किया है। बताया जा रहा है कि मुजामिल पाशा ने ही पैगंबर साहब को लेकर एक कथित पोस्ट की वजह से भीड़ इकट्ठा की और हिंसा को भड़काने का काम किया। बता दें कि राज्य सरकार ने इस पूरी हिंसा को 'सुनियोजित' बताया है। पुलिस की मानें तो पांच लोगों ने तीन सौ लोगों का गैंग बनाया था और ये गैंग पुलिस को मारना चाहता था।
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