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SPS: विवादित ढांचा ढहाने पैदल ही पहुँच गए आडवाणी के शेर, कइयों ने दी कुर्बानी, अब बनेगा राम मंदिर 

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नई दिल्ली: भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के बाद दूसरे सबसे बड़े आंदोलन में शामिल होने का अवसर दिया। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने अयोध्या मामले पर जो फैसला सुनाया वह ऐतिहासिक है और मैं फैसले से बेहद खुश हूँ। ये कहना है कि 1992 के हीरो लाल कृष्ण आडवाणी का जिनके योगदान को अयोध्या मामले पर शायद जल्द कोई भूल सके। वर्षों तक कोर्ट में केस चला और आज उसका फैसला आया और देश की बड़ी अदालत में माना कि बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनी थी। कोर्ट ने कहा कि मस्जिद के नीचे विशाल संरचना थी। एएसआई ने इसे 12वीं सदी का मंदिर बताया था। कोर्ट ने कहा कि वहां से जो कलाकृतियां मिली थीं, वह इस्लामिक नहीं थीं। विवादित ढांचे में पुरानी संरचना की चीजें इस्तेमाल की गई थीं। इसके बाद मंदिर बनने का रास्ता साफ़ हो गया और अब वहाँ भव्य मंदिर बनेगा लेकिन कई लोगों ने इसके लिए त्याग किया तो कइयों ने कुर्बानी भी दी।

.1990 में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मुद्दा जोर पकड़ रहा था।  इसी बीच लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक 'रथयात्रा' निकालने की घोषणा कर दी। बिहार में जहां लालकृष्ण आडवाणी का रथ रोकते हुए उन्हें गिराफ्तार कर लिया गया, वहीं अयोध्या में विवादित स्थल का ढांचा बचाए रखने के लिए कारसेवकों पर गोली चला दी गई।  पुलिस फायरिंग में कई लोग मारे गए। कार सेवा में बड़ी मात्रा में गुजरात और महाराष्ट्र के लोग पहुंचे थे। उस समय हम उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले  में रहते थे जहाँ से अयोध्या लगभग 40 किलोमीटर दूर है। उस समय विश्व हिंदू परिषद 06 दिसंबर को बाबरी मस्जिद के पास कार सेवा का ऐलान कर चुकी थी। देश भर से कारसेवक अयोध्या कूच कर रहे थे।  तमाम इन्टेलिजेंस रिपोर्ट कुछ और कह रही थीं। 6 दिसंबर के कई दिन पहले अयोध्या की तरफ जाने वाली ट्रेनों और बसों में जांच पड़ताल शुरू होने लगी और कार सेवकों को अयोध्या पहुँचने से रोका जाने लगा। इसके बाद कार सेवक पैदल ही अयोध्या पहुँचने का प्रोग्राम बनाने लगे और ट्रेनों बसों की बजाय सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर अयोध्या पहुंचे।



दिसंबर में सर्दी शुरू हो जाती है और उस समय मैंने कालेज में पढाई कर रहा था और सुबह खेतों पर जाकर खेतों की देखभाल करने की जिम्मेदारी भी थी। क्यू कि किसान परिवार से ताल्लुक रखता हूँ।  3 या चार दिसंबर की बात रहे होगी जब हमने देखा कि तमाम लोग खेतों के रास्ते आगे बढ़ रहे हैं। कइयों के पैरों में चप्पलें भी नहीं थीं। शायद ज्यादा पैदल चलने के कारण टूट गईं थीं और लोग भूखे भी थे। वो लोग हिंदी नहीं बोल पाते थे। 1990 में मैं गुजरात के कांडला बंदरगाह पर लगभग दो हफ्ते रह चुका था जिस कारण थोड़ी गुजराती समझ लेता था। खेतों के रास्ते अयोध्या पहुँचने वाले डर भी रहे थे लेकिन पेट के लिए इंसान कुछ भी कर सकता है इसलिए कई लोगों ने सुबह मुझसे पीने का पाने माँगा और जब हमने उन्हें पानी दिया तो कई लोग अपना पेट भी दिखाने लगे और कहने लगे कि कुछ खाने को मिल जाएगा क्या। जब हमने उन्हें कहा कि भोजन घर से बनवाकर लाना पड़ेगा तो उनके से कई लोग डरे भी कि कहीं पुलिस से कोई शिकायत न कर दी जाए तो कुछ लोग पास में ही शकरकंदी और आलू के खेत की तरफ इशारा करने लगे और हम उनका इशारा समझ गए। तुरंत आलू और शकरकंदी खोद उसे भूनकर उन्हें दिया गया। ये सिलसिला अगले दिन भी चला। सैकड़ों लोग उधर से गुजरे और अधिकतर गुजरात के लोग थे। कुछ महाराष्ट्र के लोग भी उनके साथ थे। स्थानीय लोग उस समय अयोध्या नहीं गए थे। अधिकतर कार सेवक दूसरे राज्यों के थे और गुजरात के सबसे ज्यादा थे। किसी ने लखनऊ में ट्रेन बस छोड़ दी थी तो किसी ने अमेठी में और ये सब पैदल ही अयोध्या के लिए निकल पड़े थे।

6 दिसंबर 1992 की बात करें तो उस दिन जो हुआ उसका अंदाजा इसका अंदाजा शायद बहुतों को नहीं रहा होगा। लेकिन कुछ बड़ा होने जा रहा है, ऐसा वहां के माहौल को देखकर समझा जा सकता था। तभी वहां मौजूद कार सेवकों के साथ लोगों की बड़ी संख्या विवादित स्थल के अंदर घुस गई। देखते ही देखते ढांचे के गुंबदों पर उनका कब्जा हो गया। हाथों  में बल्लम, कुदाल, छैनी-हथौड़ा लिए उन पर वार पर वार करने लगे। जिसके हाथ में जो था, वही उस ढांचे को ध्वस्त करने का औजार बन गया। और देखते ही देखते वर्तमान, इतिहास हो गया। यह सब होने में करीब दो घंटे लगे या कुछ ज्यादा।

 केंद्र की नरसिंह राव सरकार, राज्य की कल्याण सिंह सरकार और सुप्रीम कोर्ट देखते रह गए। यह सब तब हुआ, जब सुप्रीम कोर्ट ने विवादित स्थल पर किसी भी तरह के निर्माण कार्य पर पाबंदी लगाई हुई थी। एक ऑब्जर्वर भी नियुक्त किया हुआ था। दिलचस्प बात यह थी कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट को भरोसा दिलाया था कि उसके आदेशों का पूरा पालन होगा। लेकिन भरोसे का वादा खरा नहीं उतरा। उस समय अयोध्या और आस पास के जिलों में अफवाह फ़ैली की पुलिस और वहां तैनात अन्य तरह की फिरस ने भी कार सेवकों का साथ दिया। तब जाकर ढांचा गिराया जा सका। ये भी अफवाह फ़ैली कि सुरक्षाबल के तमाम जवानों ने भी ढांचा गिराने में कार सेवकों के साथ जुट गए।

चारों तरफ धूल ही धूल थी। यहां कोई आंधी नहीं चल रही थी, लेकिन यह मंजर किसी आंधी से कम भी नहीं था। अपार जनसैलाब से यही भ्रम हो रहा था। इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था कि भीड़ हजारों में थी या लाखों में। हां, एक बात जो उस पूरी भीड़ में थी, वह था-जोश और जुनून। इसमें रत्तीभर भी कमी नहीं थी। ऐसा लग रहा था-जैसे वहां मौजूद हर व्यक्ति अपने आप में एक नेता था। ‘जय श्रीराम’, ‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’, ‘एक धक्का और दो... जैसे गगनभेदी नारों के आगे आकाश की ऊंचाई भी कम पड़ती दिख रही थी। और विवादित ढांचा ध्वस्त हो गया और आज देश की सर्वोच्च अदालत ने अपना फैसला सुना दिया। अब तीन महीने बाद वहां भव्य मंदिर निर्माण शुरू होगा। देश में शांति का माहौल है। सभी धर्मों के लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकारा है।
उस समय मंदिर आंदोलन में लालकृष्ण आडवाणी और फ़ैजाबाद के भाजपा नेता विनय कटियार का अहम् योगदान था।  शायद यही वजह है कि भाजपा के लौह पुरुष आडवाणी आज कह रहे हैं कि उन्होंने दूसरे स्वतन्त्रता आंदोलन में भाग लिया था और वो आज बहुत खुश हैं। सोशल मीडिया पर मात्र कुछ लोग इधर उधर की बातें कर रहे हैं जिन्हे जेहादी गैंग कहा जाता है। उनका कहना है कि राम में ऐसा क्या है तो उन्हें मालुम हो कि देश की अधिकतर आबादी सुख-दुःख में राम का नाम जरूर लेती है। इस दुनिया से अलविदा होते समय भी अधिकतर लोगों राम कहकर ही अलविदा कहते हैं।

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