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MCF के एक कर्मचारी पर लगा 20,000 रुपये का जुर्माना, कारण जाने?

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चण्डीगढ़, 22 सितम्बर - हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल के अंत्योदय के मूल मंत्र पर चलते हुए  समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति को सरकारी योजनाओं व नागरिक सेवाओं का लाभ पहुंचाने के विजन को हरियाणा सेवा का अधिकार आयोग भी साकार कर रहा है। इस कड़ी में राज्य के विभिन्न जिलों से आयोग के पास पत्र या ई-मेल के द्वारा अधिसूचित सेवाओं से संबंधित जब भी शिकायतें आती हैं तो आयोग द्वारा उन पर तत्परता से संज्ञान लिया जाता है।

आयोग के एक प्रवक्ता ने यह जानकारी देते हुए बताया कि आयोग के पास फरीदाबाद से पीयूष कथूरिया ने ई-मेल से अपनी प्रॉपर्टी आई.डी. में नाम बदलवाने से संबंधित शिकायत भेजी, जिसमें कहा गया कि इस कार्य के लिए वह नगर निगम फरीदाबाद कार्यालय के कई चक्कर काट चुका है परंतु उसे यह सेवा नहीं दी जा रही थी।

प्रवक्ता ने बताया कि इसी प्रकार, कुछ ही दिनों बाद स्मृति रानी का भी ईमेल आयोग को प्राप्त हुआ और उसकी शिकायत भी प्रॉपर्टी आई.डी. से संबंधित थी। दोनों शिकायतों से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि नगर निगम कार्यालय के कर्मचारी आम लोगों का कार्य  बार-बार चक्कर काटने के बाद भी करते ही नहीं। हरियाणा सेवा का अधिकार आयोग द्वारा अधिसूचित सेवाओं का निर्धारित समय-सीमा के अंदर विभागों को निष्पादन करना होता है।

प्रवक्ता ने बताया कि आयोग द्वारा अधिसूचित सेवाओं में ‘संपत्ति कर रजिस्टर में मालिक के नाम का परिवर्तन’ की सेवा के लिए 15 दिन की समय अवधि निर्धारित है। आयोग ने मामले की जांच के लिए पुराना फरीदाबाद के क्षेत्रीय कराधान अधिकारी को नोटिस भेजा। नोटिस का जवाब देते हुए पीयूष कथूरिया के मामले में प्रतिवादी ने बताया कि शिकायतकर्ता ने अपने आवेदन के साथ सेल डीड की प्रति नहीं लगाई थी। जिस कारण से उनका आवेदन लंबित रहा।

प्रवक्ता ने बताया कि आयोग ने जब मामले की पूरी तरह से जांच की तो पता चला कि सेवा का अधिकार अधिनियम की सेवा देने की निर्धारित समय सीमा के बाद, जब आयोग ने रिपोर्ट मांगी तब ही नगर निगम ने उनके आवेदन पर कार्यवाही की। उन्होंने बताया कि फाईलों का आंकलन करने पर, आयोग को यह भी ज्ञात हुआ कि विजय सिंह क्षेत्रीय कराधान अधिकारी (जेडटीओ) ने निगम कार्यालय के सहायक गिरिराज सिंह को कई बार पत्र द्वारा लिखित में चेतावनी दी थी कि अधिसूचित सेवाओं को निर्धारित समय-सीमा में ही दिया जाए। इसके पश्चात पीयूष कथूरिया को फोन पर सूचित करके दस्तावेज पूरे करने को कहा गया जो शिकायतकर्ता ने जमा करा दिए और उसे सेवा प्रदान कर दी गई जबकि स्मृति रानी के मामले में, आयोग को जानकारी दी गई कि गिरिराज सिंह ने आवेदन को खारिज कर दिया, जिसका कारण दस्तावेजों में कमी थी।

प्रवक्ता ने बताया कि आयोग के लिए यह हैरानी की बात थी कि आयोग के पास भेजी गई दोनों ही शिकायतें एक जैसी थी। निगम के सहायक गिरिराज सिंह एक तरफ पीयूष कथूरिया को आवेदन में दस्तावेजों की कमी को पूरा करने के लिए उन्हें फोन करके सभी दस्तावेज पूरे करवाते हैं तो दूसरी तरफ स्मृति के आवेदन को खारिज कर देते हैं। आयोग द्वारा मामले में की गई सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट था कि गिरिराज सिंह, उन सरकारी कर्मचारियों में से हैं जो कि अपने काम की जिम्मेदारी बिल्कुल भी नहीं लेते और न ही अपने अधिकारी की चेतावनी की प्रवाह करते हैं।

आयोग ने इस कर्मचारी की लापरवाही का कड़ा संज्ञान लेते हुए गिरिराज सिंह सहायक पर  दो अलग-अलग मामलों में 20,000 रुपये  का जुर्माना लगाया और यह भी आदेश दिया कि अगर उन्होंने यह जुर्माना निर्धारित समय में नहीं भरा तो जुर्माने की राशि उसके वेतन से काट ली जाएगी।

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