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हाईकमान की महाकमजोरी और हरियाणा कांग्रेस की गुटबाजी, खून के आंसू रोने लगे हरियाणा के अच्छे कांग्रेसी नेता और लाखों कार्यकर्ता 

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नई दिल्ली- कभी-कभी क्या अब लगभग अधिकतर राज्यों के चुनावों में देखा जाता है कि कांग्रेस के उम्मीदवार बहुत पसीना बहाने के बाद भी चुनाव हार जा रहे हैं। पसीने के साथ पैसा भी पानी की तरह बहाने के बाद भी कइयों की तो जमानत जब्त हो जा रही है। आफ the रिकार्ड बात करें तो कुछ उम्मीदवार के बारे में कहा जाता है कि चुनाव में कई करोड़ खर्च करने के बाद भी हार गए। ऐसा अधिकतर कांग्रेस के उम्मीदवारों के साथ हो रहा है और लगभग एक दशक से हो रहा है। कई कांग्रेसी उम्मीदवार इस दौरान दो बार विधानसभा चुनाव लड़े और करोड़ों खर्च किया लेकिन हार ही मिली। इन कांग्रेसियों के सामने जो उम्मीदवार था उसे लोग जानते तक भी नहीं थे तब भी वो चुनाव जीत गया। 
कारण कांग्रेस हाईकमान की ऐतिहासिक कमजोरी और हाईकमान के नेताओं का चुनाव में नाम लेने से वोट और कट जाते हैं जबकि भाजपा की बात करें तो 2014 और 2019 के लोकसभा और इस दौरान कई राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में ये चर्चाएं थी कि भाजपा की टिकट किसी ( ? ) को भी इस दौरान मिल जाती तो वो भी जीत जाता। ऊपर मैंने नाम इस लिए नहीं लिखा है क्यू कि लोग कुछ जानवरों का नाम ले रहे थे। इसलिए प्रश्न चिन्ह लगा दिया। भाजपा की बात करें तो 14 और 19 में अधिकतर भाजपा नेता मोदी-मोदी कर तमाम चुनाव जीत गए। 

अब बात कर रहे हैं हरियाणा की और हरियाणा के ऐतिहासिक जिले फरीदाबाद की तो यहाँ के कांग्रेसियों का भी यही हाल है। पिछले विधानसभा चुनाव में तिगांव से ललित नागर हार गए जबकि उन्होंने विधायक रहते हुए जमकर पसीना बहाया था।  पृथला से रघुवीर तेवतिया और बल्लबगढ़ से कौशिक का भी बुरा हाल हुआ। फरीदाबाद विधानसभा क्षेत्र में हर कोई कह रहा था कि लखन सिंगला की जीत पक्की है और बड़खल से विजय प्रताप की लेकिन ये दोनों सीटें भी कांग्रेस के पास नहीं आईं। तीन जिलों में फरीदाबाद, पलवल, गुरुग्राम में सिर्फ कांग्रेस की एक सीट  आई वो एनआईटी फरीदाबाद में और ये सीट इसलिए आई कि पूरे चुनाव में कांग्रेस हाईकमान के किसी नेता का नाम नहीं लिया गया। 
जिस नेता ने भी अपने चुनाव प्रचार में कांग्रेस हाईकमान का नाम लिया वो लटक गया। करोड़ों लगाने के बाद भी हार मिली। जमकर पसीना बहाने के बाद भी हार मिली। कुछ कांग्रेसी उम्मीदवार 2014 और 2019 में दोनों बार हार गए। सूत्रों की मानें तो कमी इन उम्मीदवारों की नहीं कांग्रेस हाईकमान और हरियाणा के बड़े कांग्रेसियो की गुटबाजी थी। उस समय अशोक तंवर संगठन नहीं बना पाए और हुड्डा से लड़ते रहे। खामियाजा उम्मीदवारों को भुगतना पड़ा। 
2019 चुनावों से ठीक पहले कुमारी सैलजा को कमान मिली, समय कम था इसलिए उस समय कांग्रेस का प्रदेश में जल्द कोई संगठन नहीं बन सकता लेकिन ढाई साल से ज्यादा हो गए अब भी कांग्रेस बिना संगठन के है इसलिए हरियाणा के लाखों कांग्रेसी कार्यकर्ता एवं सैकड़ों पूर्व कांग्रेस प्रत्याशी अब हताश हैं। उन्हें लगता है कि जिन चुनावों में हम हारे वहां हमारी गलती नहीं हमारे हाईकमान और हमारे हरियाणा के दिग्गजों की गलती थी। 
इस समय आम आदमी पार्टी दावा कर रही है कि हरियाणा के कई दर्जन पूर्व विधायक और पूर्व मंत्री उनके संपर्क में हैं। ये बात लगभग 50 फीसदी सत्य है। अगर हरियाणा में कांग्रेस जल्द संगठन न बना पाई तो आप के बल्ले-बल्ले हो सकते हैं। तमाम कांग्रेसी नेता आप के पाले में मजबूरन जा सकते हैं। फरीदाबाद के कांग्रेस कुछ वर्षों से इसलिए कोई बड़ा प्रदर्शन सत्ता के खिलाफ नहीं कर पा रहे हैं क्यू कि उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि हुड्डा-हुड्डा करें या सैलजा-सैलजा , कहीं कोई चूक होती है तो दूसरे गुट का फोन आ जाता है। कई कांग्रेसी नेता तो अब खून के आंसू बहाने लगे हैं जिनका कहना है ऊपर की गुटबाजी में हम बर्बाद हो गए और गुटबाजी अभी जारी है ,न जानें कब ख़त्म होगी। वैसे आप ऐसे नेताओं पर डोरे डालने लगी है। केजरीवाल ने अपने एक बड़े नेता को फरीदाबाद बार -बार भेज रहे हैं और बोल रहे हैं हम हैं ना? आपको खून के आंसू रोने नहीं देंगे। 
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