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ठेके खुले, बाजारों और रैलियों में भीड़ जारी, स्कूलों को बंद कर खराब किया जा रहा है बच्चों का भविष्य

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नई दिल्ली- जहां चुनाव हो रहे हैं और जहां नहीं भी हो रहे हैं वहाँ की बाजारों और अन्य जगहों पर भीड़ देखी जा सकती है। जहाँ चुनाव हैं वहाँ भी महामारी के मामले हैं लेकिन वहाँ भारी भीड़ में भी नेता और उनके कार्यकर्ता बिना मास्क के देखे जा सकते हैं। कुछ पाबंदियां तमाम राज्यों में लागू हैं लेकिन इन पाबंदियों की धज्जियां उड़ रहीं हैं।

 सोशल मीडिया पर लोग सवाल उठा रहे हैं। खासकर स्कूलों के बंद होने पर बड़े सवाल उठ रहे हैं। हरियाणा के पूर्व गृह मंत्री प्रोफ़ेसर सम्पत सिंह ने एक ट्वीट कर लिखा है कि बाज़ार, होटल, जिम, मॉल, बस, रेल, हवाई जहाज़, पर्यटक स्थल, ठेके, चुनावी प्रोग्राम व सरकारी कार्यक्रमों में भीड़। सिर्फ स्कूल बंद। सरकार के इस फैसले का कोई तर्क नहीं। क्या सरकार ने कोई ऐसी समिति गठित करी जो तर्कों के आधार पर फैसले लेगी?

  लोगों का कहना है कि लगभग दो साल से स्कूल बंद हैं। बच्चों की फीस पूरी जा रही है। कई निजी स्कूलों वालों ने फीस कम करने के बजाय बढ़ा दिया। सरकार ने इस मुद्दे पर कोई ध्यान नहीं दिया जबकि दो वर्षों में लाखों लोगों का रोजगार गया। मजबूरन अपने बच्चों की फीस भर रहे हैं। सरकार निर्दयी हो चुकी है इसलिए सरकार के सामने रोने विलखने से कोई फायदा नहीं। लोगों का कहना है कि बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई से असमय उनकी आँखें खराब हो रहीं हैं और मोबाइल जो बच्चों का सबसे बड़ा दुश्मन कहा जाता था वो सच में सबसे बड़ा दुश्मन बन गया है। बच्चे भटक रहे हैं। इंटरनेट वाला मोबाइल हाथ में आते ही बच्चे गुमराह हो रहे हैं। 

हाल में विश्व स्वास्थ संगठन यानी WHO ने एक रिपोर्ट  जारी की जिसमे कहा गया कि  इसके परिणाम ज्यादा खतरनाक हैं. 5 साल से कम उम्र के बच्चों का निर्धारित समय से ज्यादा स्क्रीन टाइम उनके शारिरिक और मानसिक विकास पर सीधा असर डालता है. इस रिपोर्ट के जरिए WHO ने माता-पिता या अभिभावक को बच्चों को मोबाइल फोन, टीवी स्क्रीन, लैपटॉप और अन्य इलैक्ट्रोनिक उपकरणों से दूर रखने की हिदायत दी थी, एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया कि 5 से 15 वर्ष के बच्चों के लिए भी मोबाइल खतरनाक है। बच्चे राह से भटक सकते हैं इसलिए इस उम्र के बच्चों को भी मोबाइल से दूर रखें। अब लोग मजबूरन अपने बच्चों को मोबाइल दे रहे हैं क्यू कि स्कूल बंद हैं और ऑनलाइन पढाई का ढकोसला चल रहा है। फीस वसूलने के लिए। सोशल मीडिया पर 80 फीसदी लोग बोल रहे हैं कि बच्चों का भविष्य खराब किया जा रहा है। बच्चों को मानसिक तौर पर भी कमजोर किया जा रहा है। 

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