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अटेली खाद लूट- जुमलेबाजी बंद कर किसानों को खाद उपलब्ध करवाए सरकार - विद्रोही

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21 अक्टूबर 2021-   स्वयंसेवी संस्था ग्रामीण भारत के अध्यक्ष एवं हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रदेश प्रवक्ता वेदप्रकाश विद्रोही ने आरोप लगाया कि हरियाणा सरकार के लाख दावों के बावजूद दक्षिणी हरियाणा के किसानों को सरकार पर्याप्त मात्रा में डीएपी खाद आपूर्ति करने में नाकाम साबित हो रही है। विद्रोही ने कहा कि डीएपी खाद की कमी का यह आलम है कि बुधवार को किसानों ने अटेली में एक खाद विक्रेता की दुकान में रखा खाद लूट लिया। वहीं अहीरवाल से सम्बनिधत भाजपा विधायक किसानों में अपनी साख बचाने खुद बयान बहादुर बनकर खाद की कमी का ना केवल रोना रो रहे है अपितु इस कमी को दूर करने के लिए मुख्यमंत्री से मिलकर गुहार कर रहे है, यह भी वे मीडिया बयानों से बता रहे है। सवाल उठता है कि यदि अहीरवाल में डीएपी खाद की कमी नही है तो अटेली में किसान एक खाद विक्रेता की दुकान में रखे खाद को लूटने को क्यों मजबूर हुए? किसान जगह-जगह खाद की कमी के प्रति आक्रोश जताकर अपने-अपने जिलों के डीसी, एसडीएम से मिलकर पर्याप्त खाद उपलब्ध करवाने की मांग क्यों कर रहे है? 

विद्रोही ने सवाल किया कि यदि खाद की कमी नही तो भाजपा विधायक सार्वजनिक बयान देकर खाद की कमी होने का रोना रो कर इस संदर्भ में सीएम खट्टर जी से कथित रूप से मिलकर पर्याप्त खाद आपूर्ति की मांग क्यों कर रहे है? आश्चर्य है कि जमीन पर खाद नही मिल रहा और हरियाणा के कृषि मंत्री बेसुरा राग अलाप रहे है कि खाद की कोई कमी नही। वहीं अप्रत्यक्ष रूप से खाद की कमी को स्वीकार करके गाय के गोबर खाद की खाद की आपूर्ति करने का दमगज्जा भी मार रहे है। यदि खाद की कमी नही तो वैकल्पिक रूप से सरकार गौशालाओं से गाय का गोबर खरीदकर भेजने व मुख्यमंत्री, अधिकारी डीएपी खाद के रूप में एसएसपी खाद प्रयोग करने की बात क्यों कर रहे है? साफ है कि मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद, विधायक, अधिकारी जानते है कि डीएपी खाद की भारी कमी है और अप्रत्यक्ष रूप से वे स्वीकार भी कर रहे है कि फिर भी पर्याप्त खाद होने का जुमला उछालकर किसानों को ठगा क्यों जा रहा है? 

विद्रोही ने कहा कि दक्षिणी हरियाणा में सरसों की बिजाई का कार्य लगभग समाप्ति की ओर है और किसान बिना डीएपी खाद मजबूरी में क्या तो सरसों की बिजाई कर चुका है या करने वाला है जिसके कारण सरसों उत्पादन का कम हेाना और किसानों को आर्थिक नुकसान होना तय है। वहीं किसानों की सबसे बडी चिंता यह भी है कि जब सरसों के बिजाई समय खाद के लिए इतनी मारामारी है तो गेंंहू बिजाई के समय स्थिति कितनी विकराल हो सकती है, इसकी कल्पना सहज ही की जा सकती है। ऐसी स्थिति में विद्रोही ने सरकार से मांग की कि जुमलेबाजी करने की बजाय किसानों को पर्याप्त खाद उपलब्ध करवाये ताकि वे रबी फसल बिजाई तो कर सके। 

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