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सुप्रीम कोर्ट में जमाई कालोनी की फाइल मंजूर अगली तारीख को होगी सुनवाई

Vijay-Pratap-Singh
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फरीदाबाद ( 3 सितम्बर) कांग्रेस के नेता एवं बड़खल विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ चुके विजय प्रताप सिंह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जमाई कालोनी की तरफ से डाली गई एपलीकेशन को स्वीकार कर लिया है और एडमिट कि गई एपलीकेशन का नंबर ( जवाब दावा ) जमाई कालोनी के लोगों ने नगर निगम के आयुक्त यशपाल यादव को सौंप दिया है । अब जमाई कालोनी पर कार्यवाई नही बनती है । विजय प्रताप सिंह ने कहा कि हम चाहते हैं कि कानून के दायरे में और शांतिपूर्ण तरीके से अपने हक की लड़ाई लड़े। उन्होंने कहा कि स्थानीय प्रशासन और सरकार में बदनीयती से जो लोग गरीबों को उजाड़ ने के लिए बैठे हैं उन से कहना चाहत हूं कि गरीबों को सड़क पर उतरने के लिए मजबूर न करें ।

विजय प्रताप सिंह ने भाजपा राज की तुलना अंग्रेजी शासनकाल से करते हुए कहा कि जिस प्रकार अंग्रेजी हकूमत में फ्लैग मार्च निकाला जाता था, उसी प्रकार अब गरीबों को डराने के लिए फ्लैग मार्च निकाला जा रहा है। जमाई कॉलोनी को तोडऩे को लेकर सुप्रीम कोर्ट के कोई स्पेसिफिक ऑर्डर नहीं है। यह कार्यवाही स्थानीय नेताओं के इशारे पर की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट की आड में न केवल जमाई कॉलोनी बल्कि अन्य स्लम  कॉलोनियों को खाली कराने के प्रयास किए जा रहे हैं।

विजय प्रताप ने कहा कि हरियाणा सरकार यदि सुप्रीम कोर्ट के गरीबों को उजाडऩे से पहले पुनर्वास की व्यवस्था करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे देती, तो आज यह नौबत नहीं आती और इतने लोगों की हाय इनको नहीं लगती । सरकार को गरीबों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए । सरकार का काम लोगो को बसाने का होना चाहिए न कि उजाड़ ने का ।

सनद रहे कि पिछले मंगलवार को तोड़- फोड़ के डर के साए में जी रहे जमाई कालोनी के लोगों के बीच पहुँच कर विजय प्रताप सिंह ने अपनी तरफ से हर सम्भव मदद् देने का आश्वासन दिया था और कहा था कि वह कोर्ट से लेकर सड़क तक क़ानून के दायरे में रह कर शांतिपूर्ण संघर्ष में कालोनी के लोगों के साथ खड़े हैं ।

विजय प्रताप ने कहा कि बड़खल गांव और जमाई कालोनी का क्षेत्र वन क्षेत्र में नहीं आता यहां पर पहले से ही लोग रह रहे हैं यहां पर वन विभाग ने कभी भी पेड़ नही लगाए। लोगों को हटा कर वन क्षेत्र बनाना न्यायसंगत नहीं है । उन्होंने कहा कि आसपास के गांव पहाड़ों में बसे हुए हैं, ऐसे में ये देखना ज़रूरी है की पहाड़ में आने वाले गाँव के लोगों के पास जो भी मिल्कियत है वो पहाड़ ही में ही है। खेती की ज़मीन तो इन गाँवों वालें के पास अन्य गाँवों के मुक़ाबले 10 प्रतिशत ही है ऐसे में ये लोग कहां जाए कैसे जीवन यापन करे और अब तो उन्हें रहने भी नहीं दिया जा रहा ।

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