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हरियाणा में 464 करोड़ का GST घोटाला, DGP ने किया बड़ा खुलासा

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चंडीगढ़, 17 जनवरी - हरियाणा पुलिस ने माल एवं सेवा कर (जीएसटी) घोटाले के खिलाफ बड़ी कार्रवाई करते हुए जीएसटी फर्जी चालान बिल घोटाले में शामिल फर्जी फर्मों के 4 प्रमुख गिरोहों समेत कई अन्य आरोपियों का पर्दाफाश किया है। इन फर्जी फर्मों ने धोखाधड़ी करके 464.12 करोड़ रुपये से अधिक की राशि की हेराफेरी कर सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाया है। इन जालसाजों की सांठगांठ न केवल हरियाणा में बल्कि पूरे देश में थी।

इस घोटाले में पुलिस ने अब तक 112 करोड़ रुपये से अधिक की रिकवरी कर जाली जीएसटी आइडेंटिफिकेशन नंबर (जीएसटीआईएन) का भी खुलासा किया है। इस संबंध में अब तक राज्य अपराध शाखा के पास कुल 72 मामले दर्ज हुए हैं, जिसमें 89 अभियुक्तों को गिरफ्तार किया गया है।

          हरियाणा के पुलिस महानिदेशक  मनोज यादव ने आज इस संबंध में खुलासा करते हुए बताया कि इन व्यक्तियों ने फर्जी ई-वे बिल के माध्यम से माल की वास्तविक आपूर्ति के बिना कई फर्मों और कंपनियों को फर्जी चालान जारी किए और जीएसटीआर-3 बी फार्म के माध्यम से जीएसटी पोर्टल पर फेक इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) किए। पुलिस ने अब तक की गई कार्रवाई के तहत आबकारी और कराधान विभाग के माध्यम से दी जाने वाली 97.22 करोड़ रुपये की इनएडमिसिबल आईटीसी पर भी रोक लगाई है।

डीजीपी ने बताया कि पुलिस ने धोखाधड़ी में शामिल गिरोहों की आबकारी एवं कराधान विभाग में 80 करोड़ रुपये की आईटीसी को भी ब्लॉक किया है। उन्होंने बताया कि जीएसटी चालान घोटाले में शामिल प्रमुख सामान स्क्रैप, आयरन और स्टील आर्टिकल्स, कॉटन-यार्न, पेपर आदि थे। उन्होंने बताया कि कर देनदारी की वसूली के लिए अन्य लाभार्थियों की पहचान करने के लिए इन मामलों की जांच जारी है।

डीजीपी ने बताया कि इन गिरोहों में अधिकतम जालसाज पहले लोगों के नाम पर जीएसटी पोर्टल पर फर्जी फर्मों का पंजीकरण करते थे और फिर बिज़ीएप्प, टैलीऐप और शकुन सॉफ्टवेयर जैसे एप्स का उपयोग करके इन फर्मों के बिल तैयार करते थे। बाद में जीएसटी पोर्टल पर ई-वे बिल जेनरेट करने के लिए इन बिलों को अपलोड करते थे। इन जालसाजों द्वारा तैयार की गई ई-वे बिल की अधिकतम संख्या क्राइम ब्रांच द्वारा सत्यापन करने पर फर्जी पाई गई। इन ई-वे बिल में एंबुलेंस, सरकारी वाहन, मोटरसाइकिल, निजी वाहनों से संबंधित वाहन नम्बरों का उल्लेख किया गया है। पुलिस जांच में, फर्जी फर्म के जीएसटी पंजीकरण फॉर्म में दिखाए गए बैंक खाता नम्बर भी संदिग्ध पाए गए। धोखाधड़ी करने वालों ने संबंधित प्राधिकरणों को धोखा देने के लिए अन्य बैंक के गेटवे का भी इस्तेमाल किया।

           पुलिस जांच में यह भी खुलासा हुआ कि जीएसटी चोरी करने वालों ने रेंट एग्रीमैंट, बिजली बिल, पैन कार्ड आदि समेत कई अन्य जाली दस्तावेजों के द्वारा ऐसी फर्जी फर्मों को स्थापित किया। जांच में यह पाया गया कि इन फर्जी फर्मों का कोई व्यावसायिक परिसर या कोई स्टॉक रजिस्टर नहीं था और बिना खरीद रजिस्टर के सब काम कर रहे थे।  इसके अलावा, फर्म के नाम पर कोई बुनियादी ढांचा भी नहीं था।

जीएसटी फ्रॉड के प्रमुख मामलों की जानकारी देते हुए श्री यादव ने बताया कि अपराध शाखा मधुबन (करनाल इकाई) द्वारा गोविंद और उसके सहयोगियों को 44.79 करोड़ रुपये के फर्जी चालान घोटाले के 21 मामलों में पहले ही गिरफ्तार किया जा चुका है। आरोपी ने अपने सहयोगियों सहित बिला कॉटन व अन्य माल सप्लाई के फर्जी चालान बिल और ई-वे बिल के आधार पर फर्जी आईटीसी क्लेम लिया। इस मामले में क्राइम ब्रांच करनाल यूनिट ने अब तक 37.55 करोड़ रुपये की वसूली की है।

इसी प्रकार, हिसार क्राइम यूनिट ने सूती धागे की सामग्री की वास्तविक आपूर्ति किए बिना 157.39 करोड़ रुपये की जीएसटी राशि का घोटाला करने वाले सिरसा निवासी और वर्तमान में दिल्ली में रहने वाले अनुपम सिंगला को गिरफ्तार किया है। पुलिस जांच के दौरान, लगभग 173 विभिन्न बैंक खातों से संबंधित ब्लैंक हस्ताक्षरित चेकबुक, विभिन्न ट्रांसपोर्टर्स से संबंधित खाली बिल्टी बुक, विभिन्न व्यक्तियों के पहचान प्रमाणपत्र, मोबाइल सिम कार्ड और अन्य असंगत दस्तावेज पाए गए। उक्त मास्टरमाइंड ने कुछ जाने-माने व्यापारियों और सूती धागे के स्पिनरों को धोखे से आईटीसी मुहैया करवाई जिससे सरकार को राजस्व को नुकसान हुआ।

इन फर्जी फर्मों ने कई धोखाधड़ी फर्मों की श्रृंखला में एक कड़ी के रूप में कार्य किया। उनका उद्देश्य मूल लाभार्थी द्वारा उपयोग किए जाने से पहले कई अन्य फर्जी फर्मों की एक श्रृंखला के माध्यम से आईटीसी को स्थानांतरित करना था। गिरफ्तार मास्टरमाइंड अनुपम सिंगला इस जीएसटी घोटाले के पीछे था। उसकी सांठगांठ और नेटवर्क हरियाणा में ही नहीं बल्कि राजस्थान, गुजरात, पंजाब और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सहित अन्य राज्यों तक था। इससे पहले, आरोपी जीएसटी घोटाले में महानिदेशक, जीएसटी इंटेलिजेंस दिल्ली द्वारा गिरफ्तार किया जा चुका है। देश में कर प्रणाली के जीएसटी में शामिल होने से पहले आरोपी वैट धोखाधड़ी में भी शामिल रहा है।

एक अन्य बड़े ऑपरेशन में, पानीपत के गौरव गैंग के खिलाफ तीन मामले दर्ज किए गए हैं। वह बिना सामान और सेवाओं की आपूर्ति के नकली जीएसटी चालान जारी करने का आरोपी था। वह शेल फर्म बनाता था जिनसे करोड़ों रुपये के चालान जारी होते थे। इस गैंग ने सरकारी खजाने को 3.34 करोड़ रुपये का जीएसटी नुकसान पहुंचाया, जिसमें से पुलिस द्वारा 1.8 करोड़ रुपये की रिकवरी की जा चुकी है।

एक अन्य मामले में, गुरुग्राम के राकेश अरोड़ा गिरोह ने माल की बिक्री/खरीद के नकली बिल जमा करके 100.77 करोड़ रुपये से अधिक का राजस्व घोटाला किया। क्राइम ब्रांच गुरुग्राम यूनिट द्वारा आरोपियों पर शिकंजा कसते हुए 47.6 करोड़ रुपये की रिकवरी की जा चुकी है।

उल्लेखनीय है कि पानीपत के एक मामले में एक नकली फर्म के मालिक ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक एसएलपी दायर की थी, जिसमें कहा गया ‘यह मामला केवल जीएसटी प्राधिकरणों से संबंधित है और पुलिस के पास जीएसटी धोखाधड़ी पर कोई कानूनी अधिकार क्षेत्र नहीं है’। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में याचिकाकर्ता की एसएलपी को खारिज कर दिया और आदेश दिया कि इस संबंध में दर्ज एफआईआर में संबंधित ट्रायल कोर्ट के समक्ष आत्मसमर्पण करें।

डीजीपी  मनोज यादव ने जीएसटी घोटाले में शामिल रैकेट का भंडाफोड़ करने के लिए डीजीपी क्राइम मोहम्मद अकील और उनकी पूरी टीम की सराहना करते हुए बताया कि उनकी देखरेख में जीएसटी फर्जी चालान धोखाधड़ी के खिलाफ एक राज्यव्यापी अभियान जारी है। उन्होंने बताया कि इस धोखाधड़ी में शामिल अपराधियों को ट्रैक करने के लिए अन्य राज्यों के साथ भी समन्वय स्थापित किया जा रहा है तथा जल्द ही और गिरफ्तारियों के साथ रिकवरी की भी उम्मीद है।

आपको बता दें कि जबसे जीएसटी लागू हुई है तबसे ऐसे घोटाले सामने आ रहे हैं। जीएसटी लागू होते ही फरीदाबाद के बल्लबगढ़ में लगभग 10 करोड़ का घोटाला काफी सुर्ख़ियों में रहा था और कांग्रेसी नेता मनोज अग्रवाल को इस मामले में जेल तक जाना पड़ा था। उसके बाद से अब तक ऐसे घोटाले लगातार जारी हैं। सरकारी राजस्व को घोटालेबाज बड़ा चूना लगा रहे हैं। 



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