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विद्रोही ने खट्टर, दलाल को घेरा, कहा किसान न खालिस्तानी हैं न चीनी, पाकिस्तानी एजेंट

VP-Vidrohi-Haryana
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 4 दिसम्बर 2020- स्वयंसेवी संस्था ग्रामीण भारत के अध्यक्ष एवं हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता वेदप्रकाश विद्रोही ने कहा कि जब प्रधानमंत्री मोदीजी व कृषि मंत्री नरेन्द्र तोमर बार-बार बयान दाग रहे है कि फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य आज भी है और आगे भी रहेगा तो फिर मोदी-भाजपा सरकार को चौथा किसान कानून बनाकर फसलों के घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य देना अनिवार्य करने व एमएसपी से कम भाव देने को कानूनी अपराध बनाने में आपत्ति क्या है? विद्रोही ने कहा कि जब उद्योगों में बने समान को एक निश्चित भाव पर देना अनिवार्य है तो किसान की फसलों को भी एमएसपी पर खरीदना सभी के लिए अनिवार्य क्यों नही? यदि मोदी सरकार की नियत में खोट नही है तो उसे बकौती करने की बजाय हर स्तर पर फसल खरीदने के लिए एमएसपी कानून अनिवार्य करने में आपत्ति क्यों है? मोदी सरकार का एमएसपी पर कानून बनाने से भागना ही बताता है कि सरकार की नियत में खोट है और वह कानून में झोल रखकर किसानों को लूटकर चंद बड़े पूंजीपतियों की तिजौरियां भरने की फिराक में है। 

विद्रोही ने कहा कि भाजपा सरकार की किसानों के प्रति घृणित सोच का प्रर्दशन हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर व उनके मंत्री बार-बार सार्वजनिक कर रहे है। मुख्यमंत्री खट्टर आंदोलनरत किसानों को अप्रत्यक्ष रूप से खालिस्तानी बता चुके है। वहीं उनका कृषि मंत्री जेपी दलाल खुलकर कह रहा है कि आंदोलन करने वाले किसान पाकिस्तानी व चीनी एजेंट है। मोदीजी  अपने दास गोदी मीडिया के एक वर्ग से ना केवल किसान आंदोलन के प्रति भ्रामक प्रायोजित खबरे छपवा रहा है अपितु किसान आंदोलन के पीछे विदेशी ताकतों का हाथ बताने की बेशर्मी भी कर रहे है। विद्रोही ने कहा कि जब केन्द्र व राज्य सरकार की किसान आंदोलन के प्रति ऐसी घृषित सोच हो तो ऐसी किसान विरोधी मानसिकता वाली सरकार से किसान हित की आशा बेमानी है। सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह है कि जिन लोगों ने कभी खेत में जाकर हल नही देखा, फसलों के बारे में कुछ भी नही जानते है, वे किसानों को उपदेश झाड़ रहे है कि किसान हित में क्या है और अहित में क्या है। विद्रोही ने कहा कि जिस किसान वर्ग की पीढिया सदियों से खेती करती आई है, यदि उन्हे ही यह नही पता कि मोदी सरकार के थोपे गए कृषि कानून किसान विरोधी है या किसान हितैषी तो इससे अधिक क्रूर मजाक किसानों के साथ  क्या कर सकते है?  

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