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जाने किस परिस्थित में कब और कैसे हुआ था जय जवान जय किसान नारे का जन्म

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नई दिल्ली- सिंधु बार्डर पर बैठे किसानों के नेता उन्हें सम्बोधित कर रहे हैं। भारी संख्या में पुलिसकर्मी भी आज भी बार्डर पर तैनात किये गए हैं। किसानो को सम्बोधित करते हुए उनके नेता 1965 की कहानी बता रहे हैं जब जय जवान और जय किसान का नारा बुलंद हुआ था। वर्तमान पीढ़ी के बहुत कम युवकों को इस नारे के पीछे की कहानी के बारे में जानकारी होगी। इस नारे के जन्म एक संकट के समय दिल्ली के रामलीला मैदान में हुआ था। 

जानकारी के मुताबिक .1962 के भारत-चीन युद्ध से देश आर्थिक रूप से कमजोर हो चुका था। जब लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने तब देश में खाने का संकट था। फिर आया साल 1965, जब मानसून कमजोर रहा। अकाल की नौबत आ गई। इसी दौरान 5 अगस्त 1965 को 30 हजार पाकिस्तानी सैनिक एलओसी पार करके कश्मीर में घुस आए। भारतीय सेना ने जोरदार जवाब दिया। 6 सितंबर 1965 को भारतीय सेना ने लाहौर तक कब्जा कर लिया। पाकिस्तान के 90 टैंक ध्वस्त कर दिए। 

यह वो दौर था जब हम अमेरिका की पीएल-480 स्कीम के तहत हासिल लाल गेहूं खाने को बाध्य थे। इसी बीच, अमेरिका के राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने शास्त्रीजी को धमकी दी गई थी, अगर युद्ध नहीं रुका तो गेहूं का निर्यात बंद कर दिया जाएगा। शास्त्रीजी ने कहा- बंद कर दीजिए गेहूं देना। इतना ही नहीं, उन्होंने अमेरिका से गेहूं लेने से भी साफ इनकार कर दिया था।

अक्टूबर 1965 में दशहरे के दिन दिल्ली के रामलीला मैदान में शास्त्रीजी ने पहली बार-जय जवान जय किसान का नारा दिया। शास्त्रीजी ने लोगों से सप्ताह में एक दिन व्रत रखने को कहा, यही नहीं उन्होंने खुद भी व्रत रखना शुरू कर दिया था। देखें 1965 के हरित क्रान्ति का उदाहरण सिंधु बार्डर पर अब कैसे दे रहा है एक किसान नेता 

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