चंडीगढ़- बरोदा उप- चुनाव में जहाँ कांग्रेस अपना परिवार बढ़ा रही है तो भाजपा का परिवार कम हो रहा है। आज भाजपा को उस समय बड़ा झटका लगा जब भाजपा नेता परमिंद्र ढुल ने भाजपा से स्तीफा दे दिया और भाजपा छोड़ने के बाद उन्होंने कहा कि भाजपा जजपा सरकार किसानों को पूंजीपतियों के हांथों में में बेंचने की तैयारी कर रही है। उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश मीडिया पैनलिस्ट एवं प्राथमिक सदस्य के रूप में आज किसान बिलों के विरोध में इस्तीफा दे रहा हूँ। उन्होंने कहा कि किसान बिलों के विरोध में हरियाणा सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता के रूप में मेरा इस्तीफा देने हरियाणा के माननीय महाधिवक्ता के पास जा रहा हूँ। सत्ता का कोई भी लालच किसान हित से ऊपर नहीं हो सकता। उन्होंने सत्ता सुख को लात मार भाजपा छोड़ दी है उनके पत्र में नीचे पढ़ सकते हैं किया लात मारने की बात उन्होंने कैसे लिखा है।
माना जा रहा है कि ढुल कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं और बरोदा में टीम हुड्डा का साथ दे सकते हैं। भाजपा छोड़ने के बाद उन्होंने फेसबुक पर एक पोस्ट किया है जिसमे क्या लिखा है पढ़ें।
मुख्यमंत्री, हरियाणा प्रदेश को खुला त्यागपत्र:
महोदय,
आज आपको पुनः सत्ता सम्भाले लगभग एक वर्ष हो चला है। चुनावों के दौरान कृषि व्यवस्था सुधारीकरण व किसान की आर्थिक दशा सुधारे जाने के आपकी पार्टी के स्पष्ट वायदों व घोषणापत्रों के चलते किसानों, मज़दूरों व छोटे व्यापारियों ने आपको लोकसभा व विधानसभा चुनावों में भरपूर समर्थन दिया था। उन्हें उम्मीद थी कि गत एक दशक से भी लम्बे समय से स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करवाने का उनका संघर्ष आखिरकार सिरे चढ़ेगा।
इसी प्रकार किसानों व मज़दूरों को लगता था कि सरकार की तरफ से मासिक वेतन अथवा पेंशन पाने का उनका हक भी आखिरकार उन्हें मिल पायेगा। आपको याद दिलाना चाहूंगा कि जब विधानसभा के सदन में सर्वप्रथम मेरे द्वारा किसानों की इस वाजिब मांग को ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के माध्यम से एक बार नहीं बल्कि बारम्बार रखा गया था तो आपने भी सदन में इसकी अनुशंसा की थी।
महोदय, मेरे पिता स्वर्गीय चौधरी दलसिंह जी एक स्वतंत्रता सेनानी थे। अपने जीवनकाल में जब तक वह राजनीति में सक्रिय रहे तो प्रदेश में विपक्ष की रीढ़ साबित हुए। उन्हीं के चरणों में बैठकर मैंने गरीब किसान व मज़दूर के लिए लड़ना सीखा है। आपको याद भी होगा कि आपने जब मुझे पार्टी में शामिल करवाने का आग्रह किया था तो मैंने इन्हीं लोगों के भलाई से जुड़े कुछ अहम मुद्दे आपके समक्ष शर्त के रूप में रखे थे। क्षेत्र के विकास के अलावा मैंने जो नीतियां आपके समक्ष रखीं थीं आपने अपनी पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष से उनपर मंजूरी प्राप्त कर ही मुझे पार्टी में शामिल करवाया था। मुझे खेद है कि आज आप जब पुनः सत्ता के मुखिया बन बैठे हैं तो उन तमाम विषयों को तिलांजलि भी दे चुके हैं। मैं चुप था क्योंकि मुझे थोड़ी सही मगर उम्मीद की किरण जरूर नज़र आ रही थी।
और अब आपने केन्द्र सरकार द्वारा थोपे गए नए कृषि क़ानूनों पर आंख बन्द करते हुए हामी भर ली है। महोदय, एक मुख्यमंत्री होते हुए आपका काम केंद्रीय नेतृत्व का क्लर्क बनना नहीं अपितु प्रदेश की जनता के हितों के प्रति समर्पित रहते हुए संवेदनशील बनना व उनके प्रति उदारता दिखाना होता है। आज प्रदेशभर के किसान आपकी तरफ उम्मीद भरी निगाहों से टकटकी लगाए देख रहे हैं। मगर आपने उनकी उम्मीदों के साथ न्याय न करते हुए इन कानूनों को लागू कर किसानी की अस्मत पर हाथ डाला है। जो किसान अब से पहले न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने के लिए लड़ता था वह अब न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यवस्था को बचाने के लिए लड़ रहा है।
जुलाई में जब केंद्र सरकार ने जबरन कृषि अध्यादेशों को हरियाणा की जनता पर थोपने का कार्य किया तो उसके बाद अगस्त प्रथम सप्ताह में हरियाणा सरकार की ओर से मुझे इन अध्यादेशों के ऊपर अपने विचार रखने के लिए चंडीगढ़ हरियाणा निवास में बुलाया गया। मैंने इन अध्यादेशों के ऊपर अपने विचार रख सरकार से माँग रखी के इन अध्यादेशों को तुरंत वापिस लिया जाए एवं विभिन्न सुधार जैसे न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसे प्रावधान इनके अंदर शामिल किए जाएँ। लेकिन इन सब बातों को दरकिनार करते हुए सरकार ने अध्यादेशों को क़ानून बना जबरन लागू करवाने का काम किया और विरोध करने पर भोले भाले किसानों पर लाठियाँ बरसाई गयीं। आज हालत ये है कि विरोध प्रदर्शनों के दौरान लगभग सात किसानों की मृत्यू हो चुकी है। मैंने अपने विचारों को विभिन्न मंचों पर भी रखने का काम किया। जहां एक ओर हरियाणा सरकार एवं हरियाणा भाजपा दावा करती रही के मंडी व्यवस्था को चालू रखा जाएगा एवं ख़रीद केवल न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही होगी। वहीं दूसरी ओर विभिन्न मंचों पर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने एपीएमसी एक्ट को बिहार की तर्ज़ पर ख़त्म करने की बात की। इन दोहरे मापदंडों की वजह से जिस कृषि व्यवस्था को दीनबंधु चौधरी छोटू राम ने स्थापित किया था आज वह कृषि व्यवस्था ही ख़तरे में पड़ गयी है। सुधारीकरण दूर बल्कि आपने तो स्थापित व्यवस्था को ही तहस नहस कर डाला है। किसान लगातार तीन माह से सड़क पर है लेकिन सरकार के कानों पर जू तक नहीं रेंगती।
इसी बीच मेरे द्वारा विधानसभा समेत विभिन्न मंचों पर उठाई गयी किसान वेतन आयोग की माँग को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। महोदय, शायद आप स्वयं को नहीं मानते मगर मैं मानता हूँ कि एक प्रजातांत्रिक प्रणाली का हिस्सा होने के नाते से गरीब व आमजन की आवाज़ बनना मेरा परम् कर्तव्य है।
पार्टी की सदस्यता से पहले मैं किसान पुत्र होने के मेरे दायित्व के निर्वहन को अधिक महत्त्वपूर्ण मानता हूँ। मैं आपको याद दिला दूँ कि दीनबंधु चौधरी छोटू राम के बाद हरियाणा के सबसे बड़े किसान नेता के रूप में स्थापित हो चुके जननायक चौधरी देवी लाल ने अपने सत्तर साल के राजनैतिक जीवन में 16 बार विभिन्न पार्टियों को लात मारी थी लेकिन किसान हित कभी नहीं छोड़ा।
मुझे सौ बार भी किसी ऐसी राजनैतिक पार्टी एवं सत्ता सुख को लात मारने में हिचक नहीं होगी जो किसान विरोधी विचारधारा को आगे बढ़ाएंगे। किसान की चिता पर कथित विकास एवं सत्ता सुख मुझे स्वीकार्य नहीं है। बेशक से आज भारतीय जनता पार्टी सत्ता में है एवं मैं प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य के रूप में सत्ता का हिस्सेदार हूँ, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं अन्य नेताओं की तरह अपनी अन्तर्रात्मा को मार इस कथित सत्ता सुख का भाग बनूँ।
इन सब कारणों के कारण अब मैं अपने आप को भारतीय जनता पार्टी के अड़ियल किसान विरोधी रवैए के साथ खड़ा होने में असमर्थ पाता हूँ एवं भारतीय जनता पार्टी के सदस्य के रूप में इस्तीफ़ा देता हूँ। मैं किसानों की चिताओं और भविष्य की बर्बादी पर चल रही इस सरकार को लात मारता हूँ एवं इसे जड़ से उखाड़ने का संकल्प लेता हूँ।
Post A Comment:
0 comments: