फरीदाबाद: शहर के तीन नंबर में 800 करोड़ रूपये की लागत से बने 510 बेड का ईएसआईसी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल शहर के लाखों कर्मचारियों का इलाज नहीं कर पा रहा है। इतना बड़ा अस्पताल सिर्फ एक डिब्बा बनकर रह गया है। ये कहना है बार एसोशिएशन के पूर्व प्रधान एवं न्यायिक सुधार संघर्ष समिति के प्रधान एडवोकेट एलएन पाराशर का जिन्होंने बताया कि मेरे एक परिचित ने मुझे अस्पताल में बुलाया जहाँ मैंने देखा कि ईएसआईसी मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल न तो बड़े डाक्टर हैं न वहां किसी तरह की कोई सुविधा है। पाराशर ने बताया कि यहाँ पहुँचने वाले मरीजों को शहर की अस्पतालों में रेफर कर दिया जाता है। पाराशर ने कहा कि इस अस्पताल से कोई सीरियस मरीज किसी निजी अस्पताल में भेजा जाता है तो निजी अस्पतालों में उसे धक्के खाने पड़ते हैं। आईसीयू के मरीज को भी एक-एक घंटे बाहर बैठा दिया जाता है। पाराशर ने बताया कि 800 करोड़ रुपए की लागत बनी इस अस्पताल में छोटी-छोटी बीमारियों का भी इलाज नहीं किया जाता। डाक्टर मरीजों को रेफर कर अपना पीछा छुड़ा लेते हैं।
एडवोकेट पाराशर ने कहा कि ईएसआईसी मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल जितनी बड़ी शहर में कोई अस्पताल नहीं है लेकिन यहाँ सुविधाओं के अभाव के कारण मरीज दर की ठोकरें खाने पर मजबूर हैं। उन्होंने कहा कि शहर के छोटे-बड़े उद्योगों में लाखों मजदूर काम करते हैं जिनकी गाढ़ी कमाई से पैसा काटा जाता है लेकिन अगर इन कर्मचारियों के परिजन बीमार होते हैं तो यहाँ उनका इलाज ठीक से नहीं किया जाता। उन्हें निजी अस्पतालों में भेजा जाता है तो निजी अस्पताल में भी उन्हें परेशानी होती है। निजी अस्पताल वाले कभी बेड न खाली होने कहा बहाना करते हैं तो कभी कुछ और बोलते हैं।
पारशर ने कहा कि इस अस्पताल की कमियों को लेकर मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्ष वर्धन, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल और स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज को पत्र लिख रहा हूँ और मांग करूंगा कि अस्पताल से डिब्बा बने ईएसआईसी मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल को डिब्बे से अस्पताल में तब्दील करवाया जाए।
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