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लोकतंत्र का पर्व इतना मॅहगा क्यों ?

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कुरुक्षेत्र राकेश शर्मा :चुनाव लोकतंत्र का पर्व है  जिस प्रकार भारत में  पर्व बदलते का चलन है उसी प्रकार चुनावी रण को जितने के लिए बेताब राजनितिक दलों के उमीदवारो का चुनाव प्रचार भी बदलता चला गया मतदाताओं को लुभावने वायदों तक सिमित रहा गए है चुनाव भले ही चुनाव आयोग की सख्ती के कारण हर उमीदवार के द्वारा चुनावो को लड़ने की राशि से लेकर हर प्रकार के खर्चो पर चुनाव आयोग की पैनी नजर है लेकिन इन सब के बीच चुनाव महगा होता चला गया। चुनाव आयोग की सख्ती के कारण ही हर रोज देश के हर कोने से भारी मात्रा मे नगदी पकड़ी जा रही है आखिर इस नगदी का प्रयोग किस रूप मे राजीनीतिक दल कर रहे क्या यह कालाधन है या फिर कुछ और ?
चुनाव आयोग ने कई कड़े कदम उठाए है चुनाव प्रचार के लिया निश्चित रकम तय की गई है इसके बाबजूद भी उमीदवारो का खर्च बढ़ता ही चला गया जिसके आगे चुनाव आयोग भी बेबस दिखाई देता है। वर्ष 2014  के चुनाव की बात की जाए तो 3870 करोड़ रुपए खर्च कर दिए लकिन जानकारों की माने तो वर्ष 2019 का चुनाव सबसे महंगा होगा जिसका असर आम जनता पर पड़ने वाला है। इस बार चुनाव आयोग लोकसभा उमीदवार चुनावो मे पचास लाख रुपए से सत्तर लाख रुपए खर्च कर सकता है। अरुणचल प्रदेश, गोवा और सिक्किम को छोड़कर अन्य राज्यों के उमीदवार अपने चुनाव प्रचार के दौरान सत्तर लाख रुपए तक खर्च कर सकते है।अरुणचल प्रदेश, गोवा और सिक्किम के लिए च्यवन लाख रुपए की राशि तय की गई है।  
 देश में राजनितिक दलों को प्रचार प्रसार के लिए नए नए तरीको को अपनाना पड़ रहा है जिसके कारण उनको भारी मात्रा मे खर्चा करना पड़ रहा जिसकी वजह चुनाव महंगा होता चला गया भले ही चुनाव आयोग ने  खर्च की लिस्ट भी जारी कर दी हो फिर भी भीड़ को जुटाने के लिए भारी मात्रा मे खर्चा तो करना पड़ता है। 

रैली पर भारी मात्रा पर होता है खर्च 
 देश के राजनितिक दलों को रैल्लीयों पर  सबसे ज्यादा खर्च करना पड़ता है भीड़ को जुटाने के लिए काफी मस्कत करनी पड़ती है जिसके लिए रैली स्थल तक वाहनों की जरूरत पड़ती है उनके दोपहर का खाना भी अति आवश्यक है , रैली स्थल पर साउंड, जनता के बैठने के लिए कुर्सियां, नेता जी के बढ़िया वाला सोफा,पीने के लिए पानी,और ना जाने कितना खर्च एक रैली पर ही उमीदवार खर्च कर देते है।  उमीदवार के द्वारा रोड शो किए जाते है बाइक रैली निकाली जाती है और नेताओ का धुआँधार प्रचार, चाहे गाड़ी से हो या फिर हवाई यात्रा के जरिया उमीदवार को हर जगह पर मत की अपील करने के लिए पहुंचना ही पड़ता है। सबसे मज्जे की बात है की कभी भी किसी भी राजीनतिक दल के उमीदवार के द्वारा इसका पक्का हिसाब चुनाव आयोग को नहीं दिया जाता।  

चुनाव लोकतंत्र के लिए जरुरी है यदि चुनाव होगा तो खर्च भी होगा इस बात से  किनारा नहीं किया जा सकता लेकिन जो पैसा चुनावो के दौरान खर्च होता है उस काले धन के इस्तेमाल पर कड़ाई से रोक लगाई जाए, अगर काले धन का इस्तेमाल रुक जाए तो चुनाव में खर्च होने वाली कुल राशि का मात्र 90 प्रतिशत पैसा विकास कार्यो पर खर्च किया जा सकता है , जो देश के विकास मे अहम् भूमिका निभाएगा। चुनाव आयोग के साथ साथ इस कार्य मे जहा राजनितिक दलों को आगे आना होगा वही दूसरी ओर  देश की जनता को भी एक कदम बढ़ाना होगा। चुनाव को लोकतंत्र का पर्व कहने मात्र से पर्व नहीं कहा जा सकता जरूरत है देश के नागरिको को इस पुण्य कार्य मे आहुति ढालने की। 
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