फरीदाबाद- शहर में नगर निगम चुनावों की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। शहर के सैकड़ों बिजली के खम्बों पर पहले से ज्यादा रौनक देखी जा सकती है। नव वर्ष पर शायद की कोई खम्भा बचे जिस पर दो चार नेता न टंगे रहें। एक-एक खम्भे पर कई-कई होर्डिंग्स टंग सकते हैं। भाजपा के कुछ वर्तमान पार्षदों का कहना है कि जनवरी में ही चुनाव करवाए जा सकते हैं तो कुछ का कहना है फरवरी में हर हालत में चुनाव करवा लिए जाएंगे। कुछ वर्तमान पार्षदों ने दौड़भाग भी शुरू कर दी है। जो पार्षद चार साल तक जनता के बीच गए ही नहीं वो भी अब जनता के बीच दिख रहे हैं। वर्तमान में नगर निगम क्षेत्र में 40 वार्ड हैं लेकिन इस बार कई गांवों को नगर निगम से जोड़ा गया है इसलिए वार्ड बढ़ जाएंगे। इस समय 40 वार्डों में से अधिकतर वार्डों पर भाजपा का कब्जा है लेकिन आने वाले चुनावों में भाजपा की राह आसान नहीं है। भाजपा के लगभग आधा दर्जन पार्षद ही दुबारा चुनाव जीत सकते हैं। इसके कई कारण हैं।
लगभग 5 साल पहले 8 जनवरी 2016 को नगर निगम चुनाव हुए थे। उसके पहले कांग्रेस का निगम पर कब्जा था। कांग्रेस के अशोक अरोड़ा मेयर थे। आठ जनवरी को हुए चुनावों में अधिकतर पार्षद भाजपा के चुने गए ,सुमन बाला मेयर, देवेंद्र चौधरी वरिष्ठ उप महापौर और मनमोहन गर्ग डिप्टी मेयर बने। उस चुनाव में फरीदाबाद में मोदी लहर थी और शहर के बड़े भाजपा नेताओं ने अपने उम्मीदवारों के लिए वोट मांगते हुए कहा था कि केंद्र में भाजपा की सरकार है, राज्य में भाजपा की सरकार है और निगम में भाजपा की बन जाएगी तो फरीदाबाद के विकास में चार चाँद लग जाएंगे। तीनों इंजन भाजपा के होंगे तो विकास की गाड़ी सरपट दौड़ेगी। जनता को लगा कि ऐसा ही होगा और जनता ने भाजपा के उन उम्मीदवारों को भी पार्षद चुन लिया जो अपनी गली का चुनाव नहीं जीत सकते थे। सब मोदी-मोदी कर जीत गए।
इसके बाद जो हुआ वो फरीदाबाद के इतिहास में कभी नहीं हुआ। निगम में सैकड़ों करोड़ का घोटाला हो गया। अधिकारी बिना काम कराये सैकड़ों करोड़ डकार गए। कुछ पार्षदों ने आवाज उठाई तब जांच शुरू हुई लेकिन नाम मात्र की जांच अब तक जारी है। बल्लबगढ़ का ऐतिहासिक मटियामहल डकार लिया गया और वहाँ बड़ी इमारत खड़ी हो गई। फरीदाबाद को इस दौरान कई बार देश का सबसे प्रदूषित शहर घोषित किया गया। शहर की 90 फीसदी सड़कें खस्ताहाल हो गईं और वर्तमान में अधिकतर सड़कों पर बड़े-बड़े गड्ढे हैं। शहर में धूल-ही-धूल का बोलबाला है। इसी साल एक महामारी ने शहर की जनता को जमकर रुलाया और उस दौरान शहर के छोटे बड़े सत्ताधारी नेता अपने घरों में दुबके रहे। शहर के तमाम समाजसेवियों ने जनता का दुःख दर्द दूर करने का प्रयास किया। 40 में से दो -तीन पार्षद ही उस दौरान मैदान में दिखे। कुल मिलाकर पांच साल में भाजपा का ये तीसरा इंजन पूरी तरह से फेल हो गया और जनता अपनी बेबसी पर आंसू बहाती रही।
इस बार मेयर के डायरेक्ट चुनाव होंगे। कहा जा रहा है कि मेयर भाजपा का ही बनेगा क्यू कि मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस कई टुकड़ों में बंटी है और अब भी कांग्रेस के पास फरीदाबाद में कोई संगठन नहीं है और शहर के आधे कांग्रेसी भाजपा समर्थक हैं। वो सिर्फ नाम मात्र के कांग्रेसी हैं। कांग्रेस में एकजुटता के अभाव के कारण भाजपा फायदा उठा सकती है जबकि इस समय भाजपा के हाथ में कुछ भी नहीं है। भाजपा के मेयर उम्मीदवार ये नहीं बता सकते हैं कि पांच साल में उनकी पार्टी ने फरीदाबाद के लिए क्या-क्या किया।
कांग्रेस के मेयर उम्मीदवार के पास बड़ा मौका है लेकिन कांग्रेस उसे भुनाना ही नहीं चाहेगी। शहर के एक दो कांग्रेसी कभी ताव में आ जाते हैं तो कहते हैं मेट्रो कांग्रेस की देन है, बदरपुर फ्लाईओवर और मेडिकल कालेज कांग्रेस की देन है। बायपास रोड कांग्रेस की देन है। कांग्रेस ने हुड्डा के कार्यकाल में फरीदाबाद को फकीराबाद से फिर फरीदाबाद बनाया। भाजपा नेताओं ने कुछ नहीं किया। ये कांग्रेसी नेता ऐसे मामलों को निगम चुनावों में जानबूझकर शायद नहीं भुनाएंगे।
देश भयंकर मंहगाई झेल रहा है। फरीदाबाद की हालत बहुत खस्ता है और अगर विपक्ष सही राह पर चला तो इस बार भाजपा की राह आसान नहीं होगी क्यू कि राज्य सरकार पर कई पेपर लीक और घोटालों के आरोप भी लग रहे हैं। मोदी-लहर लगभग गायब हो चुकी है क्यू कि महामारी के दूसरे चरण में जब जनता का हाल बहुत ही बेहाल था तो पीएम बंगाल में भीड़ इकठ्ठा कर वोट मांग रहे थे। स्थानीय भाजपा नेता भी जनता से दूर रहे। इसलिए इस बार नगर निगम चुनावों में भाजपा की राह आसान नहीं है। अगर भाजपा को फायदा मिला तो इसका सबसे बड़ा कारण टुकड़ों में बंटी कांग्रेस होगी क्यू कि 2019 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में कई कांग्रेसी अपनी ही पार्टी के उम्मीदवारों को चुपचाप हराते दिखे थे।
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