चंडीगढ़- जो कभी किसी गांव का सरपंच न रहा हो वो अचानक किसी प्रदेश का सीएम बना दिया जाये तो उस पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी आ जाती है और अधिकतर नेता ये जिम्मेदारी निभाने में नाकाम रहते हैं क्यू कि उन्हें कोई तजुर्बा नहीं होता। ऐसे नेता अगर किसी राज्य के सीएम बना दिए जाते हैं तो अफशरशाही उन पर हावी रहती है क्यू कि आईएसएस, आईपीएस बनने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है। उस मेहनत से काफी तजुर्बा भी हासिल होता है। उस तजुर्बे का इस्तेमाल कमजोर नेताओं पर किया जाता है। यही तो हो रहा है हरियाणा में जहाँ अफसरशाही हावी है। सत्ताधारी पार्टी के विधायक ही धरने पर बैठते है जैसे की असीम गोयल हाल में बैठे थे। प्रदेश में कई बड़े घोटाले कोरोनाकाल में ही सामने आये और जाँच टीम बनाई गई लेकिन आज तक किसी जांच की रिपोर्ट नहीं आई क्यू कि तथाकथित घोटालों की जांच कई बड़े अधिकारी ही कर रहे हैं। शराब घोटाला हो या रजिस्ट्री घोटाला या अन्य घोटाले, जांच अधिकारियों को सब पता है कि इनके पीछे कौन है लेकिन?
प्रदेश में अफसरशाही इसी तरह हावी रही तो भाजपा के कुछ विधायक भी बगावत कर सकते हैं और ऐसा हुआ तो मनोहर सरकार अपना दूसरा कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएगी और प्रदेश की जनता को मध्यावधि चुनाव झेलना पड़ेगा। सूत्रों की मानें तो जजपा के तमाम विधायक भी खुश नहीं हैं। दादा गौतम हों या कुछ अन्य विधायक, समय समय पर ये अपनी नाराजगी जताते रहते हैं। जाट समाज दुष्यंत चौटाला से इतना नाराज दिख रहा है कि वर्तमान में अगर विधानसभा चुनाव हो जाएँ तो जजपा की खटिया खड़ी हो जाएगी। मुश्किल से दो सीटें मिलेंगी और भाजपा की बात करें तो वर्तमान में अगर चुनाव हो तो भाजपा की 5-7 सीट ही पाएगी , कारण प्रदेश में अफसरशाही बेलगाम है। जनता के काम नहीं हो रहे हैं। विकास सिर्फ कागजों पर हो रहे हैं। अधिकारी विकास के नाम पर करोड़ों डकार जा रहे हैं। खट्टर के मंत्री और मुख्य सचिव दावा करते हैं कि सड़क के गड्ढे की एक फोटो भेजते ही गड्ढे भर दिए जायेंगे। शायद ये भी एक घोटाला हो रहा है और कागजों पर ही गड्ढे भरे जा रहे हैं। यही हाल रहा तो प्रदेश की सरकार ज्यादा समय तक चल नहीं पाएगी और चल भी गई तो अगले विधानसभा चुनावों में भाजपा-जजपा का हाल बेहाल होगा। कई मंत्री जमानत भी नहीं बचा पाएंगे। जैसे 2019 में अधिकतर मंत्री चुनाव हार गए थे।
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