अनूप कुमार सैनी: रोहतक। दिल्ली में हुआ 'निर्भया' जैसा गैंगरेप केस हरियाणा के रोहतक में भी हुआ था, एक नेपाली युवती के साथ। सात आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई गई थी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। रोहतक में नेपाली युवती के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म और हत्या मामले के सात दोषियों को स्थानीय अदालत ने फांसी की सजा सुनाई गई थी। इस सजा पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है और साथ ही हरियाणा सरकार को नोटिस भी भेजा दिया।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने हाईकोर्ट के आदेश के चुनौती देने वाली दोषियों की याचिका पर सुनवाई करने का निर्णय लेते हुए हरियाणा सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए कहा है।
मामले में निचली अदालत ने इन सभी सात दोषियों पदम, पवन, सरवर, मानवीर, राजेश, सुनील और सुनील उर्फ शीला को फांसी की सजा सुनाई थी। निचली अदालत के फैसले पर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने भी मुहर लगा दी थी। हाईकोर्ट ने इस अपराध को क्रूरता की परकाष्ठा बताया था लेकिन दोषियों ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा पर रोक लगा दी।
वहीं सुप्रीम कोर्ट द्वारा सातों दोषियों की फांसी की सजा पर अंतरिम रोक लगाए जाने से मृतका की बहन आहत है। उसका कहना है कि मेरे व परिवार के जख्म तभी भरेंगे, जब दोषियों को उनके कृत्य की सजा मिलेगी। सरकार को मजबूती से सुप्रीम कोर्ट में उनका पक्ष रखना चाहिए, ताकि सेशन कोर्ट के बाद हाईकोर्ट द्वारा दोषी करार दिए गए सात लोगों को फांसी की सजा मिल सके। मेरी बहन की आत्मा को शांति भी तभी मिलेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने वीरवार को बचाव पक्ष की अर्जी सुनवाई के लिए मंजूर कर ली। साथ ही अगले आदेशों तक सातों युवकों की फांसी की सजा पर अंतरिम रोक लगा दी।
- एडवोकेट जेके गक्खड़, बचाव पक्ष
ये था मामला
नेपाली मूल की 28 वर्षीय मानसिक रूप से अस्वस्थ महिला अपनी बहन के पास रोहतक आई हुई थी। 1 फरवरी 2015 को नेपाली युवती घर से गायब हुई। 4 फरवरी को नग्न अवस्था में उसका शव मिला। उसके साथ गैंगरेप हुआ था। यह घटना इतनी वीभत्स थी कि इसकी गूंज देश भर में सुनी गई। सामूहिक दुष्कर्म करने के बाद उसके शरीर को जलाने की कोशिश की गई। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में कहा गया कि महिला के शरीर के कई अंग दुराचार के बाद निकाल दिए गए थे।
मामले में एक नाबालिग समेत 9 लोगों पर रेप और हत्या के आरोप लगे थे। पुलिस ने मामले में गहराई से जांच की और जहां शव मिला था, उसके आसपास के एरिया में पूछताछ की तो पता चला कि युवती को देर शाम गद्दी खेड़ी गांव के अड्डे के आसपास देखा गया था। इसके बाद पुलिस ने गद्दी खेड़ी गांव के ही सात आरोपी युवकों को काबू कर लिया लेकिन आठवें आरोपी सोमबीर ने गिरफ्तारी से पहले ही दिल्ली में सुसाइड कर लिया।
नौवां आरोपी नेपाली मूल का ही था, नाबालिग था। 2018 में उसे तीन साल की सजा सुनाते हुए बाल सुधार गृह भेजा गया था। अन्य सात आरोपियों गद्दी खेड़ी गांव निवासी पवन, प्रमोद उर्फ पदम, सरवर उर्फ बिल्लू, मनबीर उर्फ मन्नी, सुनील उर्फ मिढ़ा, सुनील उर्फ शीला और राजेश उर्फ घुचडू को 21 दिसंबर 2015 को फास्ट ट्रैक कोर्ट की महिला जज ने फांसी की सजा सुनाई थी। मामले सामने आने के बाद देश भर में विरोध प्रदर्शन का दौर भी चला था।
मामले में पुलिस ने 21 जुलाई 2015 को चार्जशीट पेश की थी। 3 सितंबर 2015 को सप्लीमेंटरी चालान पेश किया था। 15 अक्तूबर को पहली गवाही हुई। लगातार 9 दिनों तक गवाहियों का दौर चला। 30 नवंबर 2015 को गवाही पूरी हुई। 1 से 7 दिसंबर तक आरोपियों के बयान दर्ज किए गए।
अलग-अलग धाराओं के तहत ऐसे सुनाई गई थी सजा
आईपीसी की धारा 302- 120 बी (हत्या), (साजिश में शामिल)-------फांसी----50 हजार रुपये (जुर्माना न भरने पर दो महीने की अतिरिक्त कैद) सभी दोषियों को
376डी 120 बी (गैंगरेप) (साजिश में शामिल)----आजीवन कारावास---50 हजार रुपये जुमार्ना (जुर्माना न भरने पर दो महीने की अतिरिक्त कैद) सभी दोषियों को
366 व 120 बी (अपहरण) (साजिश में शामिल)----दस साल की कैद----20 हजार रुपये जुर्माना (जुर्माना न भरने पर दो महीने की अतिरिक्त कैद) सभी दोषियों को
201 व 120 बी (सबूत खुर्द-बुर्द करना) (साजिश में शामिल)---7 साल कैद---20 हजार रुपये जुर्माना (जुर्माना न भरने पर दो महीने की अतिरिक्त कैद) सभी दोषियों को
इसके अलावा कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 (अप्राकृतिक यौन संबंध) में दोषी राजेश उर्फ घूचडु को आजीवन कारावास और 50 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। जुर्माना न भरने पर दोषी को दो महीने की अतिरिक्त कैद भुगतनी होगी। बता दें कि पुलिस चालान में शामिल अन्य धाराओं के अलावा कोर्ट ने राजेश उर्फ घुचडू को आईपीसी की धारा 377 में दोषी करार दिया था।
सातों दोषियों में कोई बेरोजगार तो कोई फैक्टरी में मजूदर
मामले में दोषी करार दिए गए सातों युवक गद्दी खेड़ी गांव के हैं। राजेश उर्फ घुचड़ू बेरोजगार है और गांव में घूमता रहता था। सुनील उर्फ शीले अपनी कोल्ड ड्रिंक की दुकान पर काम करता था। सरवर उर्फ बिल्लू लकड़ी का काम करता था। सुनील उर्फ माड़ा गांव में ही शराब के ठेके चलाता था। पवन किसी फैक्टरी में काम करता था। प्रमोद उर्फ पदम गांव के पूर्व सरपंच का बेटा है और खेती करता था। सोमबीर एक निजी फैक्टरी में काम करता था।
जज ने की थी भावुक टिप्पणी
21 दिसंबर को सजा सुनाते हुए जज सीमा सिंहल ने कहा था कि लोग महिला को कमजोर समझते हैं। मैं इंसान होने के साथ-साथ एक महिला भी हूं। महिला होने के नाते उनका दर्द समझती हूं। मुझे न्यायिक अधिकारी होने के नाते जिम्मेदारी मिली है। मैं महिलाओं की रोने और चिल्लाने की आवाज सुन सकती हूं, जिन पर जुर्म हुए।
आज हमारी सभ्यता तो आगे बढ़ गई है लेकिन हम दिमागी रूप से बहुत पीछे हैं। देश में लैंगिक पूर्वाग्रह हैं। थोड़ा नहीं बहुत ज्यादा। कुछ पुरुष समझते हैं दुष्कर्म और जघन्य जुर्म करके महिलाओं को दबाया जा सकता है। अदालत समाज को एक संदेश देना चाहती है कि महिलाएं कमजोर नहीं हैं। महिलाएं दबने और झुकने से साफ इंकार करती हैं।
वह दामिनी या निर्भया बनने से इंकार करती हैं। उन्हें अपनी पहचान और निजता पर अभिमान है। वह किसी भी कीमत पर इसे छोड़ने को तैयार नहीं है। शर्मिंदगी तो उन पुरुषों को करनी चाहिए, जो ऐसा घिनौना कृत्य करते हैं। जैसा पीड़िता के साथ हुआ। ऐसे कृत्य से महिला के शरीर ही नहीं, बल्कि आत्मा पर भी घाव होते हैं।
कोर्ट पीड़िता के शरीर के घाव तो नहीं भर सकती लेकिन फैसले से उसकी आत्मा के घाव मिटाने का प्रयास किया गया है। साथ ही यह बताने की कोशिश की गई है कि आज महिलाएं बेबस नहीं हैं। भविष्य में भी ऐसे दोषियों से अदालत सख्ती से निपटेगी। यह घटना समाज के लिए शर्मनाक है। अपने इस फैसले से मैंने समाज में एक संदेश देने का प्रयास किया है। मैंने अपने कैरियर में पहली बार फांसी की सजा सुनाई है। इतना कहते ही उन्होंने कलम तोड़ दी।
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