नई दिल्ली: कल शाम कर्नाटक का नाटक लगभग ख़त्म हो गया जो कई महीने से चल रहा है। एक पुरानी कहावत है कि दूसरों को रुलाने वालों को भी एक न एक दिन रोना पड़ता है। विश्वाश मत न हासिल करने के पहले ही भावुक हुए कुमार स्वामी को एक धोखेबाज नेता कहा जाता है और कई पार्टियों को धोखा दे चुके हैं। कल सीएम कुमार स्वामी जब भावुक हुए तो लोग इन पर तरस खा रहे थे और इनके कारनामों को बता रहे थे। हरियाणा अब तक अपने पाठकों को बता दे कि कुमारस्वामी किसी धोखबाज नेता से कम नहीं हैं। ये कांग्रेस और भाजपा दोनों को बड़ा धोखा दे चुके हैं। 2004 के विधानसभा चुनाव में राज्य में किसी दल को बहुमत नहीं मिला था। ऐसे में कांग्रेस और जेडी (एस) के बीच समझौता हुआ, जिसके बाद कांग्रेस के धरमसिंह को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया। लेकिन यह भी सरकार ज्यादा समय तक नहीं चली और कुमारस्वामी ने 42 विधायकों के साथ समर्थन वापस लेकर धरमसिंह की सरकार गिरा दी थी। 28 जनवरी 2006 में कुमारस्वामी को राज्यपाल ने सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था।
2006 में उन्होंने पहली बार भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। इस दौरान दोनों पार्टियों के बीच सरकार बनाने से पहले सहमति बनी थी कि दोनों पार्टियों के नेता बारी-बारी से और बराबर समय के लिए सीएम बनेंगे। लेकिन जब सत्ता भाजपा को सौंपने की बारी आई तो कुमारस्वामी ने ऐसा करने से इनकार कर दिया और राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया। इसके बाद राज्य में दो दिनों तक राष्ट्रपति शासन लगाया गया था। दो दिन बाद 12 नंवबर 2007 को में राज्य में येदियुरप्पा के नेतृत्व में भाजपा ने सरकार बनाई जिसको कुमारस्वामी ने बाहर समर्थन दिया था। लेकिन कुछ दिन बाद ही समर्थन वापस लेने के साथ ही येदियुरप्पा की सरकार गिर गई।
कुमारस्वामी इस बार 23 मई 2018 को उन्होंने राज्य की कमान संभाली थी। लेकिन यह सरकार भी 14 माह के बाद 23 जुलाई 2019 को गिर गई। इस दौरान कई दिनों तक सरकार के विश्वास मत को लेकर ड्रामा चला। इस दौरान कई बार स्वामी भावुक हुए। जैसी करनी, वैसी भरनी की कहावत से स्वामी को दो चार होना पड़ा। अब संभव है जल्द कर्नाटक में भाजपा की सरकार बने। आज बुधवार को भाजपा दल के विधायकों की बैठक बुलाई गई है और बीएस यदुरप्पा फिर कर्नाटक की कमान संभाल सकते हैं।
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