चण्डीगढ़, 24 जुलाई- मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने जीवन का अनुपम बलिदान देने वाले वीर जवानों को कभी भुलाया नहीं जा सकता और उनकी शहादत को राष्ट्र सदैव याद रखेगा। भारत में बने युद्ध स्मारकों में ही नहीं बल्कि दूसरे देशों में बने युद्ध स्मारकों में भी भारतीय जवानों के नाम अंकित हैं।
ये उदगार आज हरियाणा के वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु ने पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ के रक्षा अध्ययन एवं राष्ट्रीय सुरक्षा विभाग द्वारा कारगिल विजय दिवस की 20वीं वर्षगांठ पर कारगिल शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए आयोजित तीन दिवसीय समारोह के उदघाटन अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए व्यक्त किये।
समारोह में आमंत्रित करने के लिए कैप्टन अभिमन्यु ने पंजाब विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो० राजकुमार का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि भारत के साथ जितने भी युद्ध हुए हैं, चाहे वह 1947,1962,1965 तथा 1971 का युद्ध हो, कारगिल युद्ध विषम भौगोलिक परिस्थितियों का युद्ध था। कारगिल युद्ध में दुश्मन देश ने द्विपक्षीय मामलों का उल्लंघन कर फरवरी, 1999 की सर्दियों में ही अपने सैनिकों को दुर्गम चोटियों पर तैनात कर दिया था। आमतौर पर सर्दियों में दोनों देशों के सैनिक एलओसी से छोडकऱ पीछे हट जाते हैं और दुर्गम चोटियों का स्थान छोड़ देते हैं। मेजर मोंगचूंग की कमांड में अस्थायी कम्पनी की पैट्रोलिंग पार्टी ने पाकिस्तान की इस बात का खुलासा किया कि उन्होंने समझौते का उल्लंघन किया है। कारगिल युद्ध 5 मई, 1999 से लेकर 21 जुलाई, 1999 तक लगभग 50 दिन चला और भारतीय सैनिकों ने सीमित हथियारों के साथ दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब दिया और पूरा भारत सेना के साथ एकजुट खड़ा हुआ और पाकिस्तान को अपनी राष्ट्रभक्ति की मिसाल दिखाई।
कैप्टन अभिमन्यु ने कहा कि उनका सौभाग्य है कि वे एक ऐसे परिवार में पैदा हुए हैं, जिनके छ: बेटों में से तीन बेटों ने भारतीय सेना में अधिकारी के रूप में अपनी सेवाएं दी हैं। उन्होंने कहा कि गत दिनों उन्हें कारगिल शहीदों की याद में लेह-लद्दाख में बनाए गए युद्ध स्मारक व संग्रहालय में जाने का अवसर प्राप्त हुआ। उन्होंने कहा कि इस संग्रहालय में कारगिल युद्ध से भारत सैनिकों से जुड़ी सामग्री रखी गई है। उन्होंने संग्रहालय में कैप्टन विजयंत थापर द्वारा अपने पिता को लिखे उस पत्र का भी जिक्र किया, जिसमें उन्होंने अपने पिता से कहा है कि जब तक यह पत्र आपको प्राप्त होगा शायद मैं तब तक स्वर्ग में अप्सराओं के बीच होऊंगा।
कैप्टन अभिमन्यु ने कहा कि युवाओं को ऐसे युद्ध स्मारकों का दौरा अवश्य करना चाहिए ताकि उन्हें इस बात का आभास हो किन विपरीत परिस्थितियों में भारतीय सैनिक मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सीना तानकर खड़े रहते हैं। क्योंकि जून माह में, जब उन्होंने इस संग्रहालय का दौरा किया तो वहां का तापमान माइनस 7 डिग्री सेल्सियस था।
समारोह को कैप्टन विक्रम बतरा के जुड़वा भाई विशाल बतरा ने सम्बोंधित करते हुए कहा कि टीवी धारावाहिक परमवीर चक्र तथा प्रहार जैसी फिल्म देखने के बाद ही विक्रम बतरा के मन में सेना में जाने का जजबा पैदा हुआ, अन्यथा वे मर्चेंट नेवी में चयनित हो चुके थे। उन्होंने कहा कि जब कारगिल युद्ध से पहले विक्रम बतरा छूटी पर थे तब उनकी आखिरी मुलाकात थी और उन्होंने कहा था कि कारगिल में या तो तिरंगे को फहराकर वापिस आऊंगा या तिरंगे में लिपटकर।
पश्चिमी कमान चंडीमंदिर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ, लेफ्टि0 जनरल पी.एन.बाली ने अपने सम्बोधन में कहा कि भारतीय सेना में पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश के अधिक से अधिक जवानों का भागीदारी है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा का मद्दा केवल सैनिकों से जुड़ा ही नहीं बल्कि भारत के हर नागरिक के लिए अहम है।
हरियाणा के सूचना आयुक्त एवं पूर्व में पश्चिमी कमान चंडीमंदिर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ, लेफ्टि0 जनरल के.जे.सिंह ने भी सम्बोधन किया और कारगिल युद्ध पर मेजर जनरल महेन्द्र पुरी द्वारा हिन्दुस्ता टाइम्स में लिखे गए विशेष लेख का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि कारगिल युद्ध की समीक्षा के लिए पूर्व उप-प्रधानमंत्री लाल कृष्ण अडवाणी की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की गई थी और इस कमेटी ने अनेक महत्वपूर्ण सुझाव सरकार को दिए थे।
पंजाब विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 राजकुमार ने भी अपने सम्बोधन में कहा कि कारगिल विजय दिवस विश्वविद्यालय में आयोजित करने का विचार उनके मन में उस समय आया जब एक सप्ताह पहले वे राष्ट्रपति भवन में किसी कार्यक्रम से गए थे और वहां पर उन्होंने सेना की वर्दी में अधिकारियों को देखा। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में यह कार्यक्रम तीन दिन तक चलेगा। कल 25 जुलाई को कारगिल युद्ध में शहीद 527 सैनिकों की याद में पौधारोपण किया जाएगा और विश्वविद्यालय में एक उद्यान का नाम कारगिल स्मृति उद्यान रखा जाएगा। उन्होंने कहा कि 26 जुलाई को कार्यक्रम के समापन अवसर पर कारगिल युद्ध से जुड़ी फिल्म भी दिखाई जाएगी।
समारोह में विश्वविद्यालय के संकाय सदस्य, नॉन-टीचिंग स्टॉफ के सदस्यों के अलावा लेह-लद्दाख से आए एनसीसी कैटिडस, पूर्व सैनिक व सेवारत थल सेना व वायु सेना के अधिकारी भी उपस्थित थे।
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