चंडीगढ़: हरियाणा कांग्रेस का बहुत बुरा हाल है। प्रदेश की सभी 10 सीटें हारने के बाद अब कांग्रेस विधानसभा चुनावों की तैयारी कर रही है लेकिन कांग्रेस के पास न जिला स्तर पर कोई नेता है न ब्लाक स्तर पर कार्यकर्ता जिस कारण लोकसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस इतने कार्यकर्ता भी नहीं मिले की उन्हें हर बूथ पर बैठाया जा सके। इस मामले में भाजपा सबसे तेज रही और अमित शाह के पन्ना प्रमुखों ने भाजपा की जीत में अहम् किरदार निभाया। पहले पन्ना प्रमुख हर घर तक प्रचार करने पहुंचे फिर चुनाव के दिन हर बूथ पर डटे रहे। कांग्रेस के पास कार्यकर्ता नहीं थे। बूथ संभालने के लिए काफी मात्रा में किराए के कार्यकर्ता तैनात किये गए थे जो बूथ पर कम दिखे आस-पास की चाय समोसे की दुकानों पर ज्यादा देखे गए। भाजपा के पन्ना प्रमुख बिना कुछ खाये पिए भी बूथों पर डटे रहे जिस कारण कांग्रेस को भारी हार का सामना करना पड़ा।
हरियाणा कांग्रेस संगठन आज से नहीं पांच साल से बंद पड़ा है। अब इस बंद पड़े संगठन में भारी जंग लग लग चुका है। अब भी हरियाणा कांग्रेस लगभग आधा दर्जन गुटों में बंटी है। हुड्डा गुट, सुरजेवाला गुट, कैप्टन गुट, तंवर गुट, चौधरी गुट, शैलजा गुट और बिश्नोई गुट भी है। इन नेताओं के कार्यकर्ता अलग-अलग पोस्टर लगाते हैं। सब अपने-अपने गुट के नेताओं को भावी सीएम बताते हैं। चुनावों के पहले गुलाम नबी आजाद ने एक बस यात्रा निकाली थी और कहा गया था कि इस बस में बैठकर सभी कांग्रेसी एक गुट में शामिल हो गए हैं लेकिन चुनावों में इसका असर नहीं दिखा। अब चार महीने बाद विधानसभा चुनाव हैं। संगठन में लगे जंग को खुरच-खुरच कर छुड़ाने में काफी समय लगेगा। फटाफट युद्ध स्तर पर हरियाणा कांग्रेस को संगठन तैयार करना होगा। देरी हुई तो वही हाल हो सकता है जो लोकसभा चुनावों में हुआ है।
कांग्रेस के पास कांग्रेस सेवा दल नाम का एक संगठन हुआ करता था, उसे भी ख़त्म कर डाला गया। कांग्रेस की नाव ऐसे ही नहीं डूब रही है। अपनी कमियों से डूब रही है। 2014 की जीत के बाद भी भाजपा कार्यकर्ताओं को जोड़ती रही और कांग्रेस सोती रही। रैली वगैरा में किराये के लोग मिल जाते थे? उसी से काम चलाती रही, कार्यकर्ता बनाने का प्रयास नहीं किया गया। कार्यकर्त्ता और किराये के कार्यकर्ताओं में बहुत फर्क होता है। कार्यकर्ता बिना कुछ खाये पिए पार्टी का साथ दिल से देते हैं और किराये के कार्यकर्ताओं को अगर समय से दिहाड़ी न मिले तो रिपोर्ट लिखाने थाने पहुँच जाते हैं। फरीदाबाद में ऐसा देखा जा चुका है जब लगभग डेढ़ सौ किराये के कार्यकर्ताओं ने थाने के बाहर प्रदर्शन किया था।
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