अन्य पार्टियों के मेयर उम्मीदवार शायद ही जमानत बचा सकें क्यू कि वो शहर के खम्भों पर टंगे दिख रहे हैं जमीन पर जनता की समस्या से उन्हें कोई लेना देना नहीं है। हाल में मैंने बताया था कि शहर के लोग भाजपा-कांग्रेस का विकल्प चाहते हैं और फरीदाबाद में दोनों पार्टियों के नेताओं को आपस में मिला हुआ बताते हैं। अगर भूले भटके कोई कांग्रेसी नेता किसी मुद्दे पर आवाज उठाये तो उसी पार्टी के नेता सत्ता पक्ष के नेता के पास जाकर बकरी की तरह मिमियाते हैं और अपनी ही पार्टी के नेता पर सवाल उठाने लगते हैं। हाल के एक मुद्दे की खबर शहर में आग की तरह फ़ैल चुकी है और शहर के अच्छे कांग्रेसी अपनी ही पार्टी के कुछ नेताओं पर सवाल उठा रहे हैं। निगम चुनाव और कांग्रेस की बात करें तो फिलहाल फरीदाबाद विधानसभा से वरिष्ठ कांग्रेसी नेता लखन कुमार सिंगला ही सजग हैं और इस विधानसभा क्षेत्र में जितने वार्ड हैं सबसे अपने उम्मीदवार को जिताने में जुट गए हैं।
इस बार कई गांव भी निगम से जोड़े गए हैं। बल्लबगढ़ में कांग्रेस बहुत कमजोर है। हाल में यहाँ से दो बार कांग्रेस से विधायक और मुख्य संसदीय सचिव रह चुकीं शारदा राठौर ने एक बड़ा मुद्दा उठाया और सफल भी हुईं लेकिन फ़िलहाल वो कांग्रेस में नहीं हैं। अब बल्लबगढ़ में चर्चाएं हैं कि शारदा राठौर को कांग्रेस में फिर आ जाना चाहिए क्यू कि यहाँ कोई विपक्ष नहीं है। तिगांव, बड़खल, एनआईटी, पृथला में बड़े-बड़े कांग्रेसी तो हैं लेकिन निगम चुनावों की तैयारी करते नहीं दिख रहे हैं। चर्चाएं हैं कि ये सब सत्तापक्ष के लिए काम कर रहे हैं। नाम के कांग्रेसी हैं। ये अपनी जड़ खुद कमजोर कर रहे हैं इसलिए इनमे से अधिक विधानसभा चुनावों में हार जाते हैं। फरीदाबाद की जनता अब भी तीसरे विकल्प की तलाश में है। संभव है दो हफ्ते में जनता को तीसरा विकल्प मिल जाए। कोई युवा या अच्छा समाजसेवी मैदान में कूद जाए।
अगर ऐसा नहीं हुआ तो भाजपा की मौज ही मौज होगी क्यू कि बड़े सूत्र बता रहे हैं कि फरीदाबाद में कांग्रेस के कुछ नेता अपने ही नेताओं की जड़ खोदने में जुटे हुए हैं। सत्ताधारी पार्टी की जड़ मजबूत करने में जुटे हैं। आम आदमी पार्टी की बात करें तो धर्मबीर भड़ाना ने हाल में नगर निगम के एक पूर्व अधिकारी को मेयर पद का संभावित उम्मीदवार बताया जो अब तक सिर्फ खम्भों पर टंगने तक ही सीमित हैं, जनता के बीच में नहीं हैं इसलिए ओपी वर्मा मेयर पद के लिए मैदान में उतरे तो शायद ही जमानत बचेगी।
वैसे दो महीने में अगर किसी पार्टी के नेता ने अपनी पार्टी के लिए सबसे अधिक पसीना बहाया तो वो धर्मबीर भड़ाना हैं। आम आदमी पार्टी को उन्होंने शहर की सुर्ख़ियों में ला दिया लेकिन सांप वाले गुप्ता की करतूत इस पार्टी पर भारी पड़ सकती है। सांप वाले गुप्ता ने शहर में आप को दो धड़ों में बाँट दिया। इसका खामियाजा आम आदमी पार्टी को निगम चुनावों में भुगतना पड़ सकता है। कांग्रेस की तरह ही इस पार्टी में भी कुछ ऐसे नेता हैं जो सत्ता पर कम अपने ही नेताओं पर सवाल उठाते दिख रहे हैं।
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