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किसान हित में नहीं है पंजाब में कुछ किसान नेताओं का चुनाव लड़ना- विद्रोही

Ved-Prakash-Vidrohi-Haryana
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 27 दिसम्बर 2021- संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले काले तीन कृषि कानून को वापिस लेने को मोदी सरकार को मजबूर करने के तुरन्त बाद आंदोलनरत पंजाब के कुछ किसान संगठनों द्वारा संयुक्त समाज मोर्चा बनाकर पंजाब विधानसभा चुनाव लडने वाले किसान नेताओं से स्वयंसेवी संस्था ग्रामीण भारत के अध्यक्ष वेदप्रकाश विद्रोही ने सवाल किया कि कहीं वे अन्ना हजारे के नेतृत्व में 2011-12 में भ्रष्टाचार, कालेधन के खिलाफ किये गए आंदोलन के फलस्वरूप लोकपाल कानून संसद में पारित होने के बाद जिस तरह उस समय के आंदोलनकारी नेताओं ने जनभावनाओं को भुनाकर लोकपाल, भ्रष्टाचार, कालेधन जैसे मुद्दों को दरकिनार करके राजनीतिक दल बनाकर अपनी सत्ता लिप्सा पूरी की, कहीं आज पंजाब के कुछ किसान नेता वर्ष 2021-22 में उसका पार्ट टू को तो नही दोहरा रहे है? विद्रोही ने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में चले 378 दिनों के आंदोलन के चलते मोदी-संघी सरकार ने काले किसान कानून वापिस लिए। किसान एकता जीती व संघी सत्ता अहंकार हारा, पर लगता है कि एकबार फिर वर्ष 2011-12 के लोकपाल, भ्रष्टाचार वाले आंदोलन का इतिहास पंजाब के कुछ किसान नेता दोहरा रहे है। एकबार फिर वही कहानी दोहराकर किसान मुद्दों को उसी तरह नेपथ्य में धकेल दिया जायेगा जिस तरह लोकपाल, भ्रष्टाचार, कालेधन का मुद्दा नेपथ्य में चला गया और सत्ता लिप्सा पूरी हो गई।

 विद्रोही ने कहा कि जिस आक्रमता से 2011-12 में भ्रष्टाचार, कालेधन के खिलाफ आंदोलन चला था, वह हवा-हवाई हो गया। लोकपाल बन भी गया पर आज न तो किसी को लोकपाल का आत-पता है और न ही भ्रष्टाचार, कालाधन मुद्दा रहा। भ्रष्टाचार, कालेधन के खिलाफ उस समय लडने वाले कथित आंदोलनकारी आज स्वयं भ्रष्टाचार, कालेधन के खिलाडी बनकर सत्ता मौज ले रहे है। आमजन ने जिस भावना से इंडिया अगेंस्ट करप्शन बैनर तले आंदोलन में भाग लिया था, वह भावना समाप्त हो गई। विद्रोही ने कहा कि वर्ष 2020-21 में भी 378 दिनों तक  किसानों ने जबरदस्त आंदोलन चलाकर सत्ता अहंकार को हराया पर लगता, पर अब लगता कि पंजाब के कुछ नेताओं ने इतिहास से सबक न सिखकर अपनी सत्ता लिप्सा के लिए किसानों की लडी लडाई के चलते मिली शानदार जीत को दांव पर लगाकर किसान एकता, आंदोलन को कमजोर करने का जाने-अनजाने में काम कर रहे है। देश के हर नागरिक व संगठन को राजनीतिक दल बनाने, चुनाव लडने का लोकतांत्रिक, संवैद्यानिक अधिकार है जिस पर लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले किसी भी व्यक्ति को आपत्ति नही हो सकती। लेकिन पंजाब के कुछ किसानों ने राजनीतिक दल बनाकर चुनाव लडने का जो समय चुना है, वह किसान हित में नही है। 

 विद्रोही ने कहा कि मोदी सरकार को काले कृषि कानून वापिस लिए जुम्मा-जुम्मा चार दिन भी नही हुए है कि केन्द्रीय कृषि मंत्री अप्रत्यक्ष रूप से इन काले कानूनों को फिर से वापिस लाने की बात कर रहे है। ऐसी स्थिति में किसानों की ताकत का कमजोर होकर बटना किसानों के हित में नही है, वहीं किसान भावनाओं के साथ धोखा भी है। विद्रोही ने कहा कि राजनीतिक लिप्सा के लिए किसान मु्ददे भी उसी तरह नेपथ्य में चले जाएंगे जिस तरह लोकपाल, भ्रष्टाचार व काले धन के मुद्दे नेपथ्य में चले गए। राजनीतिक दल बनाकर चुनाव लडने को लालायित नेताओं को लोकपाल, भ्रष्टाचार, कालेधन आंदोलन से सबक लेकर अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने की जरूरत समय व किसान हित की मांग है। 

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