नई दिल्ली - पुष्पेंद्र सिंह राजपूत - अपने पाठकों को देश की राजनीति से जुडी एक खास जानकारी दे रहा हूँ। 1971 में जब इंदिरा गांधी जी देश की प्रधानमंत्री थीं तक भारत पाकिस्तान में युद्ध हुआ था और पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए गए थे। उस समय इंदिरा गांधी को दुर्गा का अवतार कहा जाने लगा था। भारत ही नहीं दुनिया की ताकतवर नेताओं में उनकी गिनती होने लगी थी। 1971 के लोकसभा चुनाव में तमाम विपक्ष को उन्होंने धूल चटा दिया और जोरदार जीत हुई। कुल 521 सीटों में कांग्रेस को 352 सीटें मिलीं थी। उसके बाद उनके अंदर घमंड आता चला गया। अपनी पार्टी के अन्य नेताओं को कुछ नहीं समझतीं थीं। यहीं से उनका कद गिरने लगा। इसके बाद देश पर पहाड़ सा टूट पड़ा, गेंहू की कीमतें बढ़ने लगीं, किसानों में आक्रोश उबलने लगा, व्यापारी और ग्रामीण बिचौलिये बेरोज़गार होने लगे। इंदिरा गांधी ने अपने कुछ फैसलों को पलटा मगर तब तक देर हो चुकी थी। इसके बाद इंदिरा गांधी की लोकप्रियता गर्त में पहुंच गई। देशभर में बेरोज़गार और नाराज़ युवाओं ने विरोध प्रदर्शन, नवनिर्माण आंदोलन छेड़ दिया।
इसके बाद इंदिरा गांधी ने अपना आजमाया हुआ अस्त्र राष्ट्रवाद चलाया और मई 1974 में पोकरण में पहला परमाणु परीक्षण किया गया। लेकिन इसका जोश चंद हफ्तों तक ही रहा क्योंकि लोग गहरे आहत थे। इसके बाद उन्होंने अंतिम पासा मई 1975 में फेंका और सिक्किम का भारत में विलय करवाया। लेकिन नाराज़ लोग धरने से उठने को तैयार नहीं थे। इसके ठीक एक ही महीने बाद देश के ऊपर इमरजेंसी थोप दी गई। आवाज उठाने वाले तमाम नेताओं को जेल में ठूंस दिया गया। ताकि कोई आवाज न उठा सके। इसके बाद 1977 में लोकसभा चुनाव हुए। जनता पार्टी ने कांग्रेस को पटकनी दी। तब 544 सीटों में से जनता पार्टी को 295 सीटें मिलीं और कांग्रेस को 154 और मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बने लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में इनका कार्यकाल पूर्ण नहीं हो पाया। चौधरी चरण सिंह से मतभेदों के चलते उन्हें प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा।
आज देश के वही हालात हैं। धारा 370 हटाने और राम मंदिर का निर्माण करवाने के कारण देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छबि उतनी ही मजबूत हो गई थी जितनी उस समय इंदिरा गांधी की थी जब उन्होंने पकिस्तान के दो टुकड़े किये थे। फिर वही मंहगाई बढ़ने लगी। बेरोजगारी बढ़ने लगी। किसान सड़क पर हैं। जनता मंहगाई से त्राहि-त्राहि कर रही है। आवाज उठाने वालों की आवाज दबाने का प्रयास किया जा रहा है और उन्हें जेल में ठूंस दिया जा रहा है। सब कुछ एकतरफा चल रहा है। किसी को दो वक्त की रोटी नसीब नहीं हो रही है तो कोई तेल बेंच रोजाना सैकड़ों करोड़ रूपये कमा रहा है और सरकार के मंत्री प्रबचन देकर जनता को बरगला रहे हैं।
कोरोना से तीन लाख से अधिक मौतें हो गईं और सिस्टम फेल होना इसका कारण बताया जा रहा है ,देश की जनता निजी स्कूलों और निजी अस्पतालों में लुट रही है। मासूम बच्चे इंटरनेट पर सर्च कर रहे हैं कि पापा मम्मी की अगर मौत हो गई तो हम कैसे जियेंगे ( कल मंगलवार को देश के एक बड़े अखबार ने इस पर पूरी खबर लिखी थी क्यू कि कोरोना से तमाम बच्चों ने अपने माता पिता को खो दिया है ) जनता को लालीपाप पकड़ाया जा रहा है। खाद्य तेल, खाद्य वस्तुएं आसमान छूने लगीं हैं। पेट्रोल-डीजल के दाम लगभग रोज बढ़ रहे हैं। मोदी जी को वो दौर याद करना चाहिए क्यू कि जानकार बताते हैं कि 1971 में जो छबि इंदिरा गांधी की थी वो मोदी जी से कहीं ज्यादा अच्छी थी। लेकिन तीन साल बाद इंदिरा जी अर्श से फर्श पर आ गईं थीं और अब पीएम मोदी की छबि में भी ऐसी गिरावट दो महीने से देखी जा रही है। भाजपा के पास अभी तीन साल हैं। गलतियां ठीक की जा सकतीं हैं।
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