कुरुक्षेत्र, राकेश शर्मा : 14 नवम्बर का दिन बच्चों के लिए अनेक खुशियां ओर उमंग लेकर आता है क्योंकि इस दिन देश के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरवाल नेहरू का जन्मदिन है जिनको बच्चे प्यार से चाचा नेहरू कहकर पुकारते थे और इसी दिन को देश में बाल दिवस के रूप में शिक्षण संस्थानों में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, देश के तमाम नेता नौटंकी करते देखे जा सकते हैं। बड़ी-बड़ी बकवास करते देखे जा सकते हैं। तमाम जगहों पर प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता तो कही कही बच्चों के भविष्य को लेकर अनेक योजनाओं का शुभारंभ किया जाता है। लेकिन शहर में घूम रहे बच्चे विभाग की इस धारा से वंचित हैं। इसका कारण विभाग द्वारा चलाए जा रहे शिक्षा प्रसार अभियान या फिर इस प्रकार के अभियान को हैंडल करने वाले अधिकारियों की कार्यप्रणाली में खामियों को कहा जा सकता है। एक ओर हर बच्चे को शिक्षित करने के दावे किए जा रहे हैं दूसरी ओर शहर की सड़कों, गलियारों, बाजारों में अपने कंधों पर बोरे लिए कूड़ा बीनते व दुकानों में बर्तन साफ करते नजर आ रहे हैं। ऐसे में सर्व शिक्षा अभियान के ये दावे केवल कागजी नहीं तो क्या हो सकते हैं?
हर रोज दो जून की रोटी का जुगाड़ करने की खोज में नंगे पैरों, तन पर फटे-पुराने कपड़े पहने और कंधे पर बोरा लिए सैकड़ों बच्चे कूड़ा बीनने के लिए निकल पड़ते हैं। गर्मी हो या सर्दी अपनी आजीविका के लिए कूड़े के ढेर को छांटना इनकी मजबूरी हो गया है। एक ओर स्कूलों में जब बाल दिवस के मौके पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है उस दौरान ये बच्चे सड़कों पर कूड़ा एकत्रित करते हैं। इन्हें बाल दिवस से कोई मतलब नजर नहीं आता।
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